प्रत्याशियों की सांसे भी थमी-थमी, जनता की खामौशी कल को होगी ईव्हीएम में कैद
माही की गूंज, झाबुआ।
पिछले तीन महीने से जारी चुनावी हो हल्ला 15 नवम्बर की शाम शांत हो गया है। इन पिछले तीन महीनों में काफी राजनीतिक उठा पटक देखने को मिली है। तमाम तरह के राजनीतिक षड़यंत्र और चालें चुनावी माहौल को उलट-पुलट करती नजर आई है। प्रत्याशियों का विरोध, बागियों की बगावत और पार्टियों से नाराजगी चरम पर देखने को मिली है। कई बड़े नेताओं ने जिले की तीनों विधानसभाओं में रैलियों की और एक-दूसरे पर खूब आरोप प्रत्यारोप लगाए। कई बड़े नेता जिले में कार्यकर्ताओं में जान फूंकने पहुंचे तो कईयों ने जनता का मन भापते हुए उन्हे अपने पक्ष में करने की कवायदें की। दोनों ही दलों में बगावत के सुर उठे तो मान मनोवल भी खूब देखने को मिला। कई बगायों को पार्टियां अपने पक्ष में करने में कामयाब हुई तो कई अब भी मैदान में डटे हुए है।
अब प्रचार का समय समाप्त हो चुका है और 17 नवम्बर को सारे प्रत्याशियों का भविष्य इव्हीएम में बंद हो जाएगा। मगर प्रचार समाप्ति के बाद मतदान के पहले जो खमौशी के कुछ घंटों बचे हैं, उसमें हर प्रत्याशी और पार्टी अपना आखरी दाव खेलते दिखाई देगी। प्रचार समाप्ति के बाद इन दो दिनों में हर प्रत्याशी और पार्टी अपने स्तर पर वह सारी कवायदें करेंगे जो उन्हे जिता सके। हालांकि हर आम व खास यह जानता है कि, चुनावों में मतदान के पहले के 48 घंटे के क्या मायने है। इन 48 घंटों में ही कई तरह के समीकरण बनते और बिगड़ते दिखाई दे जाते है। वैसे यह माना जाता है कि, यही वह समय है जब प्रत्याशियों की सांसे भी थमी-थमी सी नजर आती है। प्रचार का समय समाप्त होने के बाद अब जमीनी कार्यकर्ताओं का जोर देखने को मिलेगा, जो बिना किसी हो हल्ले के पार्टी और प्रत्याशी का खामौशी के साथ घर-घर जाकर परिवार व परिचितों में प्रचार करेंगे। प्रचार के अलावा और भी बहुत कुछ देखने और सुनने को मिलेगा। मगर यह सब कुछ ऑफ द रिकार्ड होगा।
माहौल किसका..?
वैसे तो पिछले तीन महीनों से विधानसभा चुनावों को लेकर खूब शौरगुल देखने को मिल रहा है। हर पार्टी व प्रत्याशी अपनी स्थिति को मजबूत बता रहा है, लेकिन जनता का रूख भला कौन जाने...? तमाम तरह के विशलेषण और अंदाजे कई बार जनता के सामने नतमस्तक होते नजर आते है। ऊंट कब किस करवट बैठ जाए इसका कोई भरोसा नहीं होता। ठीक यही स्थिति इस बार जिले की तीनों विधानसभाओं में देखने को मिल रही है। हालांकि बावजूद इसे कई तरह के कयास लगाए जा रहे है। पिछले तीन महीनों से चल रहे प्रचार ने कई बार चुनावी समीकरणों में उलट फैर किया है। कभी किसी की स्थिति खराब तो किसी की अच्छी नजर आती रही है। मगर अब सबकुछ खामौश है और यह खामौशी का पिटारा अब 3 दिसम्बर को ही खुलेगा। इसलिए यह कह पाना भी मुश्किल ही है कि माहौल किसका है...?
त्यौहारों ने बढ़ाया चुनावी असमंजस
हालांकि 17 नवम्बर को मतदान के बाद आने वाला मतदान का प्रतिशत फिर एक बार इन चर्चाओं को गर्म करेगा कि, बढ़ा या घटा मतदान प्रतिशत किस पार्टी या प्रत्याशी के पक्ष में है। हालांकि पिछले तीन माह से चुनावी सोलगुल और माहौल को इन मतदान के पहले आने वाले त्यौहारों ने एक तरह से ठंडा कर दिया है। जनता त्यौहार मनाने में व्यस्त दिखाई दी तो पार्टियां और प्रत्याशी भी त्यौहारों की वजह से असमंजस में आकर खड़े हो गए है। हालांकि हर पार्टी, प्रत्याशी और दल का अपना एक अलग ही दावा है, लेकिन यह महज दावे है हकीकत नहीं। क्यों वर्तमान समय में लहर या हवा किस की चल रही है यह कह पाना लगभग नामुमकिन सा ही लग रहा है। कुल मिलाकर जिले की तीनों विधानसभाओं में जमकर कड़ा मुकाबला होना तय है।
मतदान अवश्य करें
पिछले तीन माह से चल रहे चुनावी सोरगुल के बाद अब जनता ने भी राहत की सांस ली है। त्यौहारों का आनंद भी उठाया है। दीपोत्सव के इस भव्य त्यौहार के साथ हमें एक त्यौहार और कल मनाना है। इसलिए पांच दिवसीय दीपोत्सव के बाद दो दिन आराम के बाद कल आने वाले इस महा त्यौहार की तैयारी भी कर लें। जिले का हर मतदाता कल मतदान जरूर करे। यह आपका लोकतांत्रित अधिकार है और आपका कर्तव्य भी है कि लोकतंत्र के महाउत्सव में आप अपनी भूमिका का निर्वहन करें। माही की गूंज जिले के सभी मतदाताओं से यह अपील करता है कि, जागरूक नागरिक होने का परिचय दें और कल अपने मत का उपयोग कर इस महात्यौहार और लोकतंत्र को बनाने में अपनी महती भूमिका निभाएं....।