एक ही पत्र को तीन बार भोपाल के निर्वाचन भवन ने किया इधर से उधर
क्या ट्रांसफर के नाम पर हुआ बड़ा खेल, ऐसे में केसे होंगा निष्पक्ष विधानसभा चुनाव, नियम विरुद्ध वर्षो से जमे हुए है अधिकारी
माही की गूंज, भोपाल/झाबुआ।
मध्य प्रदेश में नवंबर के महीने में होने वाले चुनाव को लेकर चुनाव समिति मध्य प्रदेश द्वारा निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान कराने को लेकर लगभग पूरी तैयारीयां पूर्ण कर ली गई है। और केंद्रीय चुनाव समिति ने शांतिपूर्ण मतदान करने के लिए एमपी सहित पांच राज्यों में 9 अक्टूबर को आचार संहिता का ऐलान भी कर दिया है। लेकिन बड़ा सवाल यह की मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल ने प्रदेश के 52 जिलों में 3 साल से अधिक समय से पदस्थ अधिकारी कर्मचारी जो राजनीतिक प्रभाव के चलते जमे हुए हैं, उनको हटाने को लेकर क्या कार्रवाई की है...? ऐसी कोई भी कार्रवाई सामने आती नहीं दिख रही है। भोपाल स्तर पर छुटपुट इसी महीने में कुछ ट्रांसफर तो हुए हैं। एमपी के जिलों में लंबे समय से जमे अधिकारियों को हटाने को लेकर कोई कार्रवाई नहीं करने के चलते आरटीआई मैं एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है।
मामला आदिवासी बहुल झाबुआ जिले से जुड़ा
दरअसल आरटीआई कार्यकर्ता श्रवण कुमार मालवीय द्वारा झाबुआ जिले में लंबे समय से पदस्थ अधिकारियों, कर्मचारियों की जानकारी राज्य निर्वाचन आयोग भोपाल से विषय 1 में 29 अगस्त को धारा 6 (1) मे मांगी थी। जिस संबंध में आरटीआई में पूछा गया था कि, विधानसभा निर्वाचन 2018 में जिला निर्वाचन अधिकारी झाबुआ द्वारा मध्यप्रदेश निर्वाचन आयोग भोपाल को 3 वर्ष से अधिक जिले में पदस्थ अधिकारी कर्मचारी की दी गई तबादला सूची की सत्यापित प्रति और वर्ष 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर झाबुआ द्वारा दी गईं। तबादला सूची की सत्यापित प्रति और राज्य निर्वाचन आयोग भोपाल द्वारा वर्ष 2018 और वर्ष 2023 में जारी की गई गाइडलाइन और समस्त जिलों को दिए गए आदेश की सत्यापित प्रति की मांग की गई थी। जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग भोपाल द्वारा मांगी गई जानकारी के आवेदन को मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल को धारा 6(3) मे दिनांक 4 सितंबर को अंतरिम करते हुए कहा गया था कि, स्थानांतरण संबंधित जानकारी आपके कार्यालय से संबंधित है आप समय सीमा में जानकारी उपलब्ध करावे।
निर्वाचन आयोग का पत्र मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने लौटाया, कहा आप से है संबंधित जानकारी
राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल को 4 सितंबर को भेजे गए पत्र का जवाब देते हुए मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल ने 26 सितंबर को निर्वाचन आयोग को आदेश दिए गए की जो आवेदन आपके द्वारा अंतरिम किया गया है। वह आपके कार्यालय से ही संबंधित है। आप बिंदु क्रमांक 2 की जानकारी उपलब्ध करावे और धारा 6(3) में स्थानांतरण के आवेदन को फिर से निर्वाचन आयोग को भेजा गया। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल द्वारा इसी दिनांक में जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर झाबुआ को भी बिंदु क्रमांक 1 की जानकारी देने के संबंध में आदेश जारी किए गए।
निर्वाचन विभाग में जानकारी के लिए टकराव जैसी स्थिति
सूचना के अधिकार 2005 के कानून का लोकतंत्र के मंदिर में किस तरीके से पालन हो रहा है। यह स्थिति भोपाल स्तर पर लिखित रूप से देखने को मिल रही है। जिसमें मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल ने 26 सितंबर को भेजे गए पत्र का जवाब देते हुए मुख्य निर्वाचन आयोग को कहा था कि, बिंदु क्रमांक 2 की जानकारी आपसे संबंध रखती है। लेकिन आचार संहिता लगने से 4 दिन पहले 5 अक्टूबर को निर्वाचन आयोग भोपाल ने स्पष्ट तौर पर पत्र जारी कर मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी को कहा कि, राज्य निर्वाचन आयोग पंचायत और नगरीय क्षेत्रों के चुनाव देखता है न की विधानसभा, लोकसभा चुनाव। इसलिए आप विधानसभा में हुए ट्रांसफर से संबंधित जानकारी उपलब्ध करावे। इसी के साथ तीसरी बार आरटीआई के पत्र को अंतरिम कर दिया गया।
वर्षों से एक ही जिले मे पदस्थ अधिकारी कर्मचारी के कारण चुनाव होंगे प्रभावित
आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए केंद्रीय निर्वाचन आयोग दिल्ली के आदेश और राज्य निर्वाचन आयोग को निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए सामान्य प्रक्रिया के तहत 3 साल से अधिक एक ही जिले में पदस्थ अधिकारी और कर्मचारियों को हटाना होता है। यह सामान्य प्रक्रिया है जो लोकसभा, विधानसभा चुनाव के पहले से होती चली आ रही है। लेकिन राज्य निर्वाचन आयोग भोपाल द्वारा स्थानांतरण आदेशों को ताक में रखकर सूचना के अधिकार के रूप में मांगी गई जानकारी के आवेदन को इधर से उधर एक नहीं तीन बार घुमाया गया। जो कहीं ना कहीं आने वाले विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित कर सकता है। जिले में कई ऐसे अधिकारी है जो वर्षो से एक ही जगह जमे हुए है। पेटलावद विधानसभा में कुछ ऐसे अधिकारी भी है जो स्थानीय स्तर पर यही के निवासी भी है इसके बाद भी निर्वाचन के नियमो के विपरीत यही जमे हुए है।
2018 में हुआ था निर्वाचन राशि में भ्रष्टाचार
तत्कालीन वर्ष 2018 में राज्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल द्वारा जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर झाबुआ को निर्वाचन स्थल पोलिंग बूथ के लिए करोड़ों रुपए की राशि जारी की गई थी। जिसमें लाइट, टेंट, बिजली, पानी ,भोजन, चाय-नाश्ता आदि सामग्री और सुविधाओं के लिए राशि दी गई थी। लेकिन सारा खर्च नगर परिषद् झाबुआ, राणापुर, मेघनगर, थांदला, पेटलावद और जिले की 377 ग्राम पंचायत द्वारा खर्च वहन किया गया था। जिसकी शिकायत भी राज्य निर्वाचन पदाधिकारी को सारे एविडेंस के साथ की गई थी। किंतु राज्य निर्वाचन पदाधिकारी और जिला कलेक्टर की मिली भगत से कलेक्टर आशीष सक्सेना की जांच तत्कालीन कलेक्टर सोमेश मिश्रा द्वारा खुद जांच अधिकारी ने बंद कर दी गई थी, ना कोई जांच बिठाई ना ही जांच करने के लिए कमेटी बनी और न ही नगर परिषदो,ं पंचायत के कथन लिए गए। सबसे बड़ी बाद उक्त जांच प्रतिवेदन में किस दिनांक को जांच हुई है उसका भी हवाला तक प्रतिवेदन में नहीं है।
प्रदेश पदाधिकारी ने 26 सितंबर को आयोग और जिला कलेक्टर को पत्र लिख जानकारी उनके संबधी बताकर जानकारी देने हेतु लिखा पत्र।
4 सितंबर को आयोग ने प्रदेश पदाधिकारी को पत्र लिखा।
आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा मांगी गई जानकारी।
5 अक्टूबर को आयोग ने प्रदेश पदाधिकारी को पत्र लिखकर मय कारणों सहित जानकारी देने को कहा।