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माही की गूंज, मेघनगर।
मोरवी का पुल हादसा हो या कोलकाता का पुल हादसा या फिर जबलपुर का फ्लाई ओवर हादसा, जब तक निर्दोष लोगों की जान नही जाती तब तक प्रशासकीय तंत्र कुंभकर्णीय नींद से जागता ही नही है। शायद उसी का इंतजार मेघनगर का प्रशासन भी कर रहा है। क्योंकि करोड़ों रुपए की लागत से बना मेघनगर का ओवर ब्रिज भ्रष्टाचार का रोज एक नया किस्सा बयां कर रहा है। ब्रिज के उद्घाटन के 6 महीने के भीतर ही ओवर ब्रिज के बीचों बीच इतना बड़ा गड्ढा हो गया था जो की कई हादसों की वजह बना और जिसमें कई वाहन चालक गंभीर रूप से घायल हुए। वही ब्रिज वाला रोड भी कुछ माह में ही छतिग्रस्त हो गया। इस ओवर ब्रिज की लाइट की सुविधा भी जादुई है, कभी आधी लाइट जलती है तो कभी जलती ही नही है। वही अब इस ब्रिज में हुए भ्रष्टाचार का एक ओर किस्सा ओवर ब्रिज पर लटकता एक लाइट का लोहे का पोल बयां कर रहा है जो कई दिनों से ब्रिज की दीवार के सहारे अटका हुआ है। इस पोल के सारे बोल्ट खुल चुके हैं लेकिन ईसकी मरम्मत करने की जहमत कोई प्रशासनिक अधिकारी या ब्रिज निर्माण एजेंसी ने नही उठाई। लोहे का ये भारी भरकम पोल ब्रिज पर गुजरने वाले वाहनों के कंपन से कभी भी ब्रिज पर घूमने आने वाले लोगों पर गिर सकता है या वहां से गुजरने वाले किसी भी वाहन पर गिर सकता है। जिससे अचानक से पीछे चलने वाले और कई वाहन भी गति की वजह से एक साथ गंभीर दुर्घटना का शिकार हो सकते है और कई लोगों की जान निर्माण एजेंसी और प्रशासनिक लापरवाही से जा सकती है। मगर भ्रष्ट तंत्र में जनता की जान की परवाह है किसको है...? यहा तो सब कमीशन के खेल में व्यस्त और मस्त है और जनता बेचारी सिर्फ त्रस्त ही त्रस्त है।
रख रखाव करने वाली एजेंसी भी सुस्त
सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि, जिस एजेंसी के पास ओवर ब्रिज के निर्माण का कार्य था रख रखाव की जिम्मदारी भी उसी की होती है, तो फिर वो एजेंसी कर क्या रही है और अगर उनकी लापरवाही से कोई हादसा हो गया तो फिर सिर्फ कागजी खानापूर्ति में लोगों की मौत दफन होकर रह जाती है। जबकि इस तरीके की लापरवाही करने पर एजेंसी के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 133 (घ) के अंतर्गत स्थानीय मजिस्ट्रेट को गंभीर कार्रवाई करनी चाहिए। ताकि दूसरी बार इस तरीके से लोगो की जान जोखिम में डालने की और ऐसी लापरवाही करने की हिम्मत अन्य किसी निर्माण एजेंसी की न हो।