जनता के पैसों पर भाजपा का प्रचार...
माही की गूंज, संजय भटेवरा
झाबुआ। कहते हैं कि फूलों की खुशबू को कोई रोक नहीं सकता है, फुल है तो वो महकेगा ही। कुछ इसी प्रकार भाजपा सरकार ने वास्तव में अगर विकास किया है तो उसे विकास यात्रा की क्या आवश्यकता है...?
भाजपा सरकार को मध्यप्रदेश में 20 वर्ष होने को आए हैं ( बीच में 15 माह छोड़कर ) उसके बावजूद सरकार को सरकारी खर्च पर विकास यात्रा निकालना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि, सरकारी योजना का लाभ जमीनी स्तर पर नहीं मिल पाया है। भ्रष्टाचार मुक्त शासन का दावा करने वाली भाजपा सरकार में ही सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार हो रहा है और यह विकास यात्रा पुराने भ्रष्टाचार पर पर्दा डालकर नया सपना दिखाने वाली यात्रा है, यह आम जनता का ही नहीं बल्कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों का भी कहना है।
मध्य प्रदेश में पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव हुए करीब 8 माह बीत चुके हैं पर नए जनप्रतिनिधियों के हाथ में आज तक पैसा नहीं आया है वे बड़े-बड़े वादे करके स्वयं के खर्चे पर चुनाव जीत चुके हैं लेकिन अब के वादे पूरे नहीं कर पा रहे हैं। कुछ जनप्रतिनिधियों ने अनऔपचारिक चर्चा में कहा है कि, लगभग 8 माह बीत चुके हैं आने वाले समय में विधानसभा और 2024 में लोकसभा चुनाव होने से अधिकांश समय में आचार संहिता लगी रहेगी ऐसे में 2024 लोकसभा चुनाव तक उनका आधा कार्यकाल बीत जाएगा ऐसे में जनता से किए गए वादे किस प्रकार पूर्ण करेंगे।
उधार लो खीर पीयो
एक खबर के अनुसार मध्य प्रदेश सरकार ने इस वितीय वर्ष में 17 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है और इस समय मध्य प्रदेश सरकार पर 3 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज हो चुका है। सरकार का एक साल का बजट भी लगभग 3 लाख करोड रुपए का रहता है। ऐसे में मध्यप्रदेश सरकार पर 1 वर्ष के बजट के बराबर का कर्जा हो चुका है। बावजूद इसके सरकार न तो अपने खर्च में कटौती कर रही है और न ही घोषणाओं में कोई कमी कर रही है । इस पर कुछ बुजुर्ग कटाक्ष कर रहे हैं कि, कर्ज लेकर घी पीना कहां की समझदारी है।
भ्रष्टाचार बना शिष्टाचार
वर्तमान में भ्रष्टाचार, शिष्टाचार बन चुका है और यह भ्रष्टाचार आम जनता के साथ ही नहीं जनप्रतिनिधियों के साथ भी हो रहा है। कुछ चुने हुए नए जनप्रतिनिधियों के अनुसार वर्तमान में कोई भी कार्य स्वीकृति के लिए प्रस्ताव बनाकर ले जाने पर कमीशन की मांग पहले की जाती है और कमिशन देने के बाद ही कार्य की स्वीकृति निकलती है। हर योजना में भ्रष्टाचार चरम पर फैला है। मोदी सरकार की घर-घर नल जल योजना के नाम पर भी भारी भ्रष्टाचार किया जा रहा है, योजना में करोड़ों रुपए बर्बाद किए जा रहे हैं। केवल टंकी निर्माण किया जाकर अमानक स्तर के पाइप डाले जा रहे। कुछ ऐसा ही कार्य मनरेगा और अन्य योजनाओं में किया जा रहा है। इस संबंध में कई लोगों का कहना है कि वर्तमान में सरकारी कार्य केवल फोटो खिंचवाने तक सीमित रह गया है। यानी बाहर से चकाचक कर केवल एक बार फोटो खींच जाए बाकी तो रामभरोसे है। पिछले वर्षों में गांव में सीमेंटीकरण के नाम पर करोड़ों रुपए के रोड बनाए गए हैं और वे रोड मात्र एक दो माह में ही खत्म हो गए हैं और उनपर धूल उड़ रही है। कुछ ऐसा ही भ्रष्टाचार शौचालय निर्माण में किया गया, जहां मात्र दीवारें खड़ी करके बाहर से फोटो खींच लिया गया है और वे शौचालय उपयोग के पूर्व ही जर्जर हो चुके हैं करोड़ों रुपए के शौचालय आज भ्रष्टाचार की कहानी स्वयं बतला रहे हैं।
पानी के टैंकरों की स्थिति
प्रतिवर्ष जल संकट की समस्या से निपटने के लिए सांसद, विधायक द्वारा ग्राम पंचायतों के टैंकर दिए जाते हैं लेकिन वे टेंकर किस प्रकार के होते हैं यह जग जाहिर है अगर वर्तमान में देखा जाए तो गिने-चुने टैंकर ही चालू हालत में मिलेंगे लेकिन रिकॉर्ड में सैकड़ों टैंकर होंगे।
शिक्षा और स्वास्थ्य
सरकार की सबसे प्रमुख जिम्मेदारी आम जनता को निशुल्क शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करवाना लेकिन आज मामूली बुखार का इलाज करवाना हो तो भी आम नागरिक को निजी अस्पतालों में जाना पड़ता है। क्योंकि सरकारी अस्पतालों में डॉक्टर ही नहीं है यही हाल शासकीय विद्यालयों का भी है यहां शिक्षक ही नहीं है।
उधारी पर मनरेगा
मजदूरों को 100 दिन की मजदूरी सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय रोजगार गारंटी ( मनरेगा ) लागू है लेकिन इस योजना में 1-1, 2-2 साल बीत जाने के बाद भी सरकारी पैसे नहीं मिलने के कारण मजदूरों की मजदूरी नहीं मिलती है। वही कार्य करने वाली एजेंसी के कर्ता धरता बाजार से उधारी पर निर्माण सामग्री हो या शासकीय निर्माण कार्य में ट्रैक्टर या अन्य मशीनरी कार्य हेतु लाते हैं और एक-दो माह में कार्य करने का पैसा मिल जाएगा कहते हैं । लेकिन कार्य होने के बाद ट्रैक्टर मालिक हो या अन्य मशीनरी संसाधन मालिक सभी सरपंच सचिव व संबधित विभाग के इंजीनियरों को फोन लगा लगाकर परेशान हो जाते हैं लेकिन 2-2 साल तक के कार्य के भी पैसा नहीं मिल पा रहा है । जिसके चलते संसाधन वाले भी कर्जे में डूबे है। जिन पेटी ठेकेदारो ने शासकीय कार्य का ठेका लिया वह ठेकेदार भी मजदूरी व निर्माण कार्य करने के बाद कर्ज में डूबे है। ऐसे में कोई ठेकेदार शासकीय कार्यो का वर्तमान स्थिति में ठेका लेने से दूरी बना रहा है, तो वहीं मशीनरी संसाधन वाले भी शासकीय कार में अपने संसाधन देने से मना कर रहे हैं। जिससे देखकर साफ है कि, संबधिंत विभाग के इंजीनियर हो या सरपंच-सचिव बाजार में शासकीय कार्य के रुपैया से कर्ज़ के तले है और बाजार में मुंह छुपाने के लिए मजबूर है।ं ऐसे में भाजपा सरकार को विकास विकास यात्रा के रूप में निकाली जा रही यह यात्रा में जनता की नाराजगी साफ दिखाई दे रही है, नतीजन ढ़ाक के तीन पात की स्थिति भाजपा सरकार की सामने आ रही है।