माही की गूंज, झाबुआ।
जिले में पहली बार कलेक्टर बनकर आई आईएएस रजनीसिंह अब तक जिले व अधिनस्त अधिकारियों की स्थितियों को शायद समझ नहीं पाई है। ऐसा इसलिए भी है कि, जिले में अंगद के पैर की तरह जमें अधिकारियों को शायद मेडम से ज्यादा अनुभव है। वे यह अच्छी तरह से जानते है कि, अधिकारियों को किस तरह से घुमाया जाए। किस तरह से उन्हे सिर्फ सब्ज बाग दिखाए जाए। अच्छे-अच्छे अनुभवी कलेक्टरों को घुमाने वाले यह अधिकारी पहली बार कलेक्टर बनी रजनीसिंह को बहुत सस्ते में ही निपटा रहे है। कलेक्टर सिंह की अनुभवहिनता का पूरे जिले में भ्रष्ट और कामचोर अधिकारी भरपूर फायदा उठा रहे है। स्थिति ऐसी है कि, कलेक्टर की सुनते सभी है, लेकिन करते तो वे अपने मन की ही है। सितम्बर माह में जब आईएएस रजनीसिंह की कलेक्टर के रूप में जिले में नियुक्ति हुई थी। तब से लेकर अब तक यानि लगभग दो-ढाई माह में भी कलेक्टर सिंह अपनी कलेक्टरी का प्रभावी उपयोग करती दिखाई नहीं दी। पिछले दो माह में कोई भी बड़ी कार्रवाई भ्रष्टाचार को लेकर कलेक्टर द्वारा अभी तक देखने को नहीं मिली है। हालांकि अपने महकमें में मेडम ने अधिकारियों को इधर-उधर कर छोटे-मोटे बदवाल जरूर किए। मगर इसके अलावा स्थितियां जस की तस ही रही। इसके उलट कलेक्टरी की अनुभवहीनता का प्रमाण देते हुए मेडम ने कई ऐसे फैसले लिए है जो जिले में चर्चा का विषय बने है। थांदला मे शासकीय जमीन मामले में पटवारी की बलि लेना हो या एसडीएम के स्थानांतरण और स्थगन के महज 24 घंटे में दो आदेशों का जारी होना हो। इस तरह के और भी मामले है जो कलेक्टर सिंह की अनुभवहिनता के कारण चर्चाओं में रहे है।
माही की गूंज कलेक्टर रजनीसिंह की नियुक्ति के तुरंत बाद ही सचेत कर चुका था कि, ‘‘जिले में नए अधिकारियों की आमद एक ऐसे समय में हो रही है जबकि चुनाव सिर पर है और जिले में राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। इस स्थिति में आने वाले अधिकारियों के लिए यह अग्नि परीक्षा का समय है। यह स्थिति जिलेवासियों को यह परखने का मौका देगी कि, जिले को मिले नए अधीकारियों में कितनी काबिलियत है और वे जिले के सर्वांगिण विकास में अपनी किस तरह की भूमिका अदा करने वाले है। जिले की जनता को, टप्पे खाते अधिकारियों के आने और जाने से इतना अनुभव तो हो ही गया है कि, वे कुछ दिनों में यह जान लेते है कि, किस अधिकारी की किस तरह की कार्य प्रणाली है। जिले की जनता ने आते-जाते अधिकारियों को पहले भी देखा है, वर्तमान में भी देख रही है और नए अधिकारियों को भविष्य में भी देखेगी।’’
अब स्थितियां स्पष्ट होती नजर आ रही है कि, जिले में अंगद के पैर की तरह जमें अधिकारी किस तरह से कलेक्टर मेडम को घुमा रहे है या कलेक्टर के निर्देश की सिर्फ खानापुर्ति कर रहे है। क्योंकि छोटे स्तर के अधिकारी भी कलेक्टर के निर्देशों को मानने से गुरेज कर रहे है। हालांकि इसकी सजा के तौर पर वे कलेक्टर की कार्रवाई का शिकार भी हो रहे है। मगर कलेक्टर की इस तरह की कार्रवाई से कोई सबक हासिल करने को तैयार नहीं है। इसका प्रमाण खुद कलेक्टर रजनीसिंह दे रही है।
जनसंपर्क कार्यालय से जारी समयावधि पत्रों की समीक्षा बैठक के प्रेसनोट में बकोल कलेक्टर रजनीसिंह ‘‘मेरे द्वारा मेघनगर भ्रमण के दौरान बीएलओ द्वारा जानकारी नहीं दी गई कार्य में लापरवाही देखने को मिली है।’’ इसके अलावा कलेक्टर के निरीक्षण के दौरान लापरवाही के रूप में स्कूलों में मिलने वाले मध्यान्ह भोजन पर भी कलेक्टर मेडम का कहना है कि, ‘‘मेरे भ्रमण के दौरान व्यवस्था ठीक नहीं पाई गई है, मेरे द्वारा सख्त कार्यवाही की गई है। अधिकारी बच्चों को सही समय पर एवं पर्याप्त मात्रा में तथा मेन्यु अनुसार भोजन दिया जा रहा है या नही इसे गंभीरता से देखें।’’ टीएल बैठक में अपने ही अधिकारियों के सामने कलेक्टर के इस तरह के बोल उनकी कार्य क्षमता पर सवालिया निशान उठा रहे है। होना तो यह चाहिए था कि, कलेक्टर मेडम निरीक्षण के बाद जिम्मेदार जिला अधिकारियों से सवाल-जवाब कर सख्त कार्रवाई करती और उन्हे निपटा देती। इन बातों से यह स्पष्ट है कि, जिले में स्थिति ठीक नहीं है। अधिनस्त अधिकारी अपने उच्च अधिकारियों के निर्देशों को हवा में उड़ा रहे है। लापरवाही को लेकर कलेक्टर मेडम के इस तरह के रवैये से यह भी स्पष्ट हो रहा है कि, कलेक्टर रजनीसिंह जिले की जनता के विश्वास पर खरा उतरती दिखाई नहीं दे रही है। अगर जनता का विश्वास जीतना है तो कठोर कदम उठाकर भ्रष्टाचारियों को निपटाना पड़ेगा। क्योंकि यह कहावत सही है कि ‘‘लातों के भूत बातों से नहीं मानते।’’ जिस तरह से कलेक्टर मेडम शैक्षणिक संस्थाओं का निरीक्षण कर रही है और बदहाल स्थितियां सामने आ रही है। उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि, पूरे जिले में किस कदर काम करने की जरूरत है। लगभग पूरे जिले की स्थिति एक जैसी ही है। अगर कलेक्टर इन स्थितियों को देखने के बाद भी हरकत में नहीं आती है तो बदलाव की कोई संभावना जिले में नहीं दिखाई पड़ती। वैसे भी जिले में पिछले वर्षों में मध्यान्ह भोजन को लेकर कई बड़े-बड़े घोटाले और भ्रष्टाचार सामने आ चुके है। भ्रष्टाचारियों को सजा भी हुई है। बावजूद इसके अब तक मध्यान्ह भोजन मेन्यु अनुसार मिलना जिले में अब भी एक दिवास्वप्न की तरह ही प्रतीत होता है। जमीनी हकीकत यह भी है कि, आंगनवाडिय़ों में बच्चों को सालभर दलिये के अलावा कुछ नहीं मिलता। कलेक्टर के निर्देशों की खानापुर्ति का प्रमाण यह भी है कि, हर सप्ताह होने वाली समयावधि पत्रों की समीक्षा में बैठक में हर बार एक रटा-रटाया सा निर्देश यह भी होता है कि, ‘‘भू-माफिया, शराब माफिया मिलावटखोरों, खनिज माफिया, अतिक्रमण करने वालों पर निरन्तर दण्डात्मक कार्यवाही की जाए।’’ मगर यह निर्देश कब और कितने प्रभावी होते यह कोई नहीं जानता। इन निर्देशों का निरन्तर पालन किस तरह से हो रहा है या कौन कर रहा है, किसी को दिखाई भी नहीं देता। इसका सीधा सा मतलब यह है कि, या तो कलेक्टर रजनीसिंह की कोई सुन नहीं रहा है या कलेक्टर मेडम के यह निर्देश सिर्फ खानापुर्ति के लिए है...!