पुलिस महकमे की कारस्तानियां हो रही उजागर
माही की गूंज, झाबुआ।
जिले में पदस्थ होते ही पुलिस अधीक्षक अगम जैन ने जिले में नशामुक्ति अभियान को लेकर जैसे जंग ही छेड़ दी थी। जिले के अलग-अलग स्थानों पर हो रही मादक पदार्थ गांजे की खेती इस तरह उजागर हुई मानों कोई चिराग से जिन निकल आया हो। लगातार गांजे की खेती करने वाले अपराधियों की धर-पकड़ सी शुरू हो गई। एक नजर में एसपी जैन का यह कारनामा बहुत ही जबरदस्त दिखाई दे रहा था। मात्र कुछ दिनों में जिले में कई जगह गांजे की खेती पर छापा मारी कर लगभग सवा करोड़ से अधिक का मादक पदार्थ गांजे के रूप में बरामद किया गया। गांजे की खेती पर हुई बड़ी कार्रवाई ने एसपी अगम जैन को जैसे सुर्खियों में लाकर खड़ा कर दिया। ऐसा हो भी क्यों ना, काम तारीफे काबिल ही था। मगर एसपी जैन की इस नशा मुक्ति अभियान की कवायदों पर उनका ही अमला किस कदर कालिख पोत रहा है इसका अंदाजा शायद पुलिस अधीक्षक जैन को होगा या नहीं, यह तो नहीं कह सकते। या फिर यूं कहें कि, साहब के ही संरक्षण में मातहत यह सारा खेल, खेल रहे थे। क्योंकि यह संभव ही नहीं कि, पुलिस की अवैध कमाई का हिस्सा साहब लोगों तक ना पहुंचता हो। पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल जिले झाबुआ का एक इतिहास यह भी रहा है कि, जो भी अधिकारी यहां आता है वह हर तरह से गच्च हो जाता है। जिला अन्य राज्यों की सीमा से लगा होने के कारण यहां अवैध धंधों की भरमार है और सबसे बड़ा अवैध धंधा यहां शराब का है। जिले की जनता यह भी खूब जानती है कि, पिछले समय में रहे अधिकारियों के माफियाओं से किस तरह के संबंध रहे है और माफियाओं ने तत्कालीन अधिकारियों की किस-किस तरह से सेवा की है, यह सारी बातें जग जाहीर है। इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि, आने वाले अधिकारी भी दूध के धुले तो होंगे नहीं जो माफियाओं से सेवा ना कराए। अपने अधिनस्तों को टारगेट देकर तत्कालीन अधिकारियों ने अवैध वसूली भी कई माफियाओं से करवाई है। इस लिए इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि, साहब के अधिनस्तों पर इस तरह का दबाव नहीं होगा या वे अपनी अवैध कमाई से साहब को हिस्सा ना देते होंगे।
मंगलवार को जिले की अंतरवेलिया चौकी पर एक ऐसी घटना घटित हुई जिसने जिले के पुलिस अधिकारियों और पूरे महकमें पर सवाल खड़े कर दिए है। पिछले दिनों अंतरवेलिया चौकी प्रभारी राजेन्द्र शर्मा ने पुलिस कप्तान के निर्देश अनुसार नशा मुक्ति अभियान के तहत 23 नवंबर को चौकी क्षेत्र के ग्राम खुटाया से गांजे की अवैध फसल के रूप में 21 पौधे बरामद किये थे। गांजे के पोधे बरामद करने की बात को जोर-शोर से पुलिस कप्तान व उनके विभाग ने भुनाया और मीडिया में सुर्खियां बटोरी। गांजे की बरामदगी के बाद मामले में होने वाली आगे की कार्रवाई में चौकी प्रभारी राजेन्द्र शर्मा ने खेल खेलना शुरू किया। गांजा बरामदगी मामले में शर्मा ने सहआरोपी बनाने को लेकर आरोपित के भाईयों के साथ ब्लेक मेलिंग शुरू कर दी। यह सारा मामला खुटाया के पूर्व सरपंच के भाई बदिया के खेत से उजागर हुआ था। पुलिस ने बदिया को इस मामले में गिरफ्तार कर जेल भी भेज दिया था। जिसके बाद चौकी प्रभारी शर्मा रमेश मुणिया और दो अन्य भाईयों को भी मामले में सहआरोपी बनाने की धमकी देकर पुलिस कस्टडी में रखने के साथ उनसे रिश्वत की मांग कर रहा था। इस पूरे मामले की शिकायत जमीन मालिक किडिया के भतीजे रमेश पिता सुरतान मुनिया ने लोकायुक्त इंदौर के समक्ष की थी। शिकायतकर्ता के अनुसार चौकी प्रभारी शर्मा से अन्य तीन भाईयों को सहआरोपी न बनाने को लेकर 50 हजार रुपये में सेटिंग हुई थी। जिसमें सोमवार को उन्होने शर्मा को 5 हजार रुपये दे दिए थे। मंगलवार को 20 हजार रुपये देना तय हुए और बाकी के 25 हजार बुधवार को देना थे। शिकायत के बाद लोकायुक्त इंदौर की टीम सक्रिय हुई और मंगलवार को सुबह अंतरवेलिया पहुंची। शिकायतकर्ता तय रकम 20 हजार के साथ अंतरवेलिया चौकी पर राजेन्द्र शर्मा को देने पहुंचा और पीछे से लोकायुक्त की टीम ने शर्मा को रंगे हाथों रिश्वत लेते गिरफ्तार कर लिया। इस मामले में चौकी प्रभारी शर्मा पर भ्रष्टाचार की धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। कार्रवाई के बाद शर्मा को निलंबित भी कर दिया गया है।
पुलिस विभाग द्वारा नवंबर माह में लगातार कार्रवाई करते हुए पूरे जिले में नशामुक्ति अभियान के तहत गांजे की अवैध खेती पर अभियान चलाया गया। पूरे माह में करीब 6-7 मामले उजागर भी हुए। आरोपियों की धरपकड़ भी हुई। बताया यह भी जाता है कि, 23 नवंबर खुटाया के जो गांजे के पोधे की बरामदगी की कार्रवाई की गई वह इस माह की आखिरी कार्रवाई थी। जिसमें 50 हजार रुपये की रिश्वत चौकी प्रभारी राजेंद्र शर्मा ने सहआरोपी न बनाने को लेकर आरोपी के तीन भाईयों से डिमांड की थी। रिश्वत खौर राजेंद्र शर्मा की बात करें तो उसके कारनामें भी जग जाहिर है। अनुभव का इतना पक्का रोड पर चलती गाड़ी देखकर यह बता दे कि, इस गाड़ी में क्या भरा हुआ है। जिला मुख्यालय पर रहते हुए भी शर्मा ने बहुत मस्ती छानी है। हाईवे से गुजरने वाली शराब से भरी गाडिय़ों पर भी इसकी पैनी नजर बनी रहती थी। शातिर इतना कि, किसी को कानों-कान खबर नहीं होती थी और शर्मा जी उगरानी कर गच्च हो जाते थे। इसके अलावा पंचायत चुनावों में फर्जी गार्ड बनाने का मामला भी इसी शर्मा के माथे था। मगर इस मामले में उस पर कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। मगर अब बागड़ बिल्ला शर्मा लोकायुक्त की गिरफ्त में है। अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि, जिले में पिछले माह गांजे की खेती को लेकर हुई पुलिस की तमाम कार्रवाईयां कहीं इसी तरह तो अंजाम नहीं दी गई। अगर ऐसा है तो फिर सवा करोड़ रुपये से अधिक का गांजा अब तक जप्त किया जा चुका है। जिसमें बड़ी कार्रवाईयों में बड़े स्तर पर रिश्वत खोरी का घालमेल हुआ होगा। यह और बात है कि, अंतरवेलिया में आकर रिश्वत खोरी का एक छोटा सा मामला उजागर हो गया और चौकी प्रभारी शर्मा लोकायुक्त के हत्थे चढ़ गए। सवाल यह भी उठता है कि, जो पुलिस अधीक्षक जिले में आते ही नशा मुक्ति जैसे अभियान को जोर-शोर से चला रहे थे उनके ही महकमे में इस तरह रिश्वत खोरी का मामला उजागर होना विभाग को पूरी तरह से कटघरे में खड़ा करता दिखाई दे रहा है। अगर पुलिस विभाग में शर्मा जैसे बागड़ बिल्ले मौजूद है तो यह तय है कि, इस तरह की ब्लेकमेलिंग और भी मामलों में हुई होगी। अंतरवेलिया चौकी का मामला उजागर होने के बाद सोशल मीडिया पर आमजनता की राय तो कुछ ऐसी है कि, ‘‘पूरा बांस ही पोला है’’। यह भी तय है कि, जिले की पुलिस जिस तरह से सेटिंग और गठजोड़ में पारंगत है, उससे इस तरह के मामले उजागर होने पर कोई आश्चर्य नहीं।
माना तो यह भी जा रहा है कि, तमाम माफियाओं के हिस्से साहब लोगों के बंगलों तक पहुंचते है तो विभाग की कारस्तानियों और अवैध कमाई का हिस्सा भी साहब लोगों के बंगलों और जेबों तक जरूर पहुंचता होगा। वैसे भी गुजरात चुनाव जिले में शराब माफियाओं की कारस्तानियों को उजगार कर रहे है। ऐसा नहीं है कि, चुनावी माहौल के पहले जिले से किसी तरह की शराब तस्करी नहीं होती थी। लेकिन अब चुनाव के चलते शायद पुलिस को मजबूरी में इस तरह की कार्रवाईयों को अंजाम देना पड़ रहा है। कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि खाएंगे, खिलाएंगे और नशा मुक्ति अभियान चलाएंगे।