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नए नवादे अधिकारियों का दंश झेलता जिला, अब भी आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की प्रयोगशाला ही बना हुआ है
14, Oct 2022 2 years ago

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माही की गूंज, संजय भटेवरा

झाबुआ। जिले का यह इतिहास रहा है कि, यह जिला नए नवादे आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की प्रयोगशाला ही हमेशा बना रहता है। नए-नए अधिकारी जिले में आकर हमेशा ही नए-नए प्रयोग अपने हिसाब से करते आए है। नित नई योजनाएं नए अधिकारी जिले में लागू करते रहे है, लेकिन इन योजनाओं के परिणाम सिफर ही नजर आए है। नए अधिकारियों द्वारा लागू की गई योजनाएं समय के साथ-साथ गर्त में चली गई है। लेकिन इन योजनाओं से कभी जिले का फायदा नहीं हुआ। अधिकारियों के तबादले के बाद वह सारी योजनाएं जो जिले में प्रयोग की गई वह वर्तमान में गर्त में पहुंच चुकी है। इसका सीधा-सीधा नुकसान जिले की जनता ने ही भुगता है। अब यह पूरी तरह से स्पष्ट हो चुका है कि, झाबुआ जिला नए अधिकारियों की एक प्रयोग शाला ही है। नए आईएएस और आईपीएस जिले में आते ही नए-नए प्रयोग करने और प्रशिक्षण के तौर पर कार्य करने के लिए। यह जिला ऐसे दर्जनों एक्सप्रीमेंटों से गुजर चुका है। कई अधिकारियों की कार्यप्रणाली देख चुका है। झाबुआ जिले को प्रयोगशाला समझकर अधिकारी यहां से निकल कर अच्छे या बड़े जिले में स्थानांतरित कर दिए जाते रहे है। अच्छे और बुरे कामों को देखते हुए उन्हे यहां से रवाना कर दिया जाता रहा है। उदाहरणों की एक लंबी फहरिस्त है, लेकिन जिला अब ऐसे अधिकारियों की बदौलत जहां का तहां ही नजर आता है। झाबुआ जिले की गिनती अब भी प्रदेश में सबसे गरीब व अशिक्षित जिलों में नंबर एक या दो पर ही होती है। यह स्पष्ट है कि, इस स्थिति में सबसे ज्यादा नुकसान जिले की जनता का ही हुआ है। अगर जिले को कोई अनुभवि अधिकारी मिल भी जाता है तो स्थिति और खराब हो जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा है, जिन्होने आदिवासी जिले को लूट-खसौट करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। मिश्रा के राज में हर तरह का भ्रष्टाचार अपनी चरम सीमा तक पहुंच चुका था। हर तरह के माफिया अपनी काली कमाई का हिस्सा मिश्रा तक पहुंचाते थे। और खुलकर जिले में काले कारनामों को अंजाम देते थे। पूर्व कलेक्टर सोमेश मिश्रा के स्थानांतरण के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि, जिले को एक अच्छा आईएएस अधिकारी मिलेगा, लेकिन नवागत कलेक्टर रजनीसिंह की कुछ दिनों की कार्यप्रणाली ने जिलेवासियों की उम्मीदों पर पानी फैर दिया है। कलेक्टर रजनीसिंह पहली बार कलेक्टर बनकर झाबुआ जिले में पदस्थ हुई है और यही कारण है कि, वे अपनी अनुभव हिनता को जाहिर करती हुई जिले में काम कर रही है। इसका उदाहरण कलेक्टोरेट के फेसबुक पेज पर की जाने वाली पोस्टों पर जिले की जनता द्वारा दी गई प्रतिक्रिया और कमेंट है। यह अलग मुद्दा है कि, कलेक्टर साहिबा कहीं चापलूस अधिकारियों के मकडज़ाल में तो नहीं फंसी हुई है या फिर जिले की राजनीति का शिकार होते हुए वे इस तरह की अनुभवहिनता जाहिर कर रही है। कलेक्टर साहिबा की जिले में पोस्टिंग ऐसे वक्त में हुई है। जब जिले की राजनीति पूरी तरह से गर्माई हुई थी। नगरीय निकाय चुनाव के एन मौके पर नए नवेले और अनुभवहिन अधिकारियों को जिले की बागडोर सौंपना सरकार की कार्य प्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह खड़े करते नजर आ रही है। नगरीय निकाय चुनाव तो मानों जैसे-तैसे निपट गए लेकिन नगरपालिका अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनाव को लेकर जैसे कलेक्टर साहिबा निर्णय ही नहीं ले पा रही है। कलेक्टर साहिबा द्वारा लगातार तारीखों में बदलाव किए जा रहे है। यह अब भी निश्चित नहीं है कि, अब तारीखें नहीं बदलेंगी। क्योंकि पिछले कुछ दिनों में नगरपालिका अध्यक्ष, उपाध्यक्ष चुनाव को लेकर मेडम ने बहुत कम समय में तीन अपने ही फैसले को परिवर्तित कर दिया। इसके पीछे किसी अदृश्य शक्ति का होना एक अलग मुद्दा है। लेकिन कलेक्टर मेडम का अपना दृष्टिकोण और विवेक तो होगा ही जिससे वे अपने निर्णयों का सत्यापन कर सके। अगर ऐसा नहीं है तो यह तय है कि, कलेक्टर साहिबा अपनी अनुभवहिनता से जिले को गर्त के रसातल तक पहुंचा देंगी। जिले के सबसे बड़े अधिकारी का अपने विवेक से निर्णय न लेना पद की गरीमा को भी धुमिल ही करता नजर आएगा। मगर अधिकारियों का जिले में बतौर प्रयोगशाला में आना जिस तरह से रिकार्ड रहा है, उसी तरह से जिले की जनता का भी यह इतिहास रहा है कि, वह मेहनतकश है, मजबूत है और अपने वजूद के लिए लड़ सकती है, किसी अधिकारी के आने या जाने से उसे मानों कोई फर्क ही नहीं पड़ता, वे अपने व अपने परिवार के लिए लगातार संघर्ष करती रहती है। हां मगर अधिकारी अगर उनके हक को मारेंगे तो यह तय है कि, गरीब जनता की हला किसी को नहीं छोड़ती। इसलिए मशवरा यह है कि, चापलूस अधिकारियों के मकडज़ाल से बाहर आईए और राजनीतिक दबाव को तोड़कर जनता के लिए काम किजिए। अगर ऐसा होता है तो आपके काम वैसे ही याद किए जाएंगे जैसे पिछले कुछ अधिकारियों को जिले की जनता अब भी याद करती है। बाकी आपके विवेक पर निर्भर करता है... क्योंकि अधिकारियों का आना-जाना तो लगा ही रहता है...बाकी जो है सो तो है ही...।

        इसी चुनावी माहौल में जिले में पुलिस कप्तान को भी बदला गया। नवागत एसपी अगम जैन सीधे राजभवन से जिला पुलिस कप्तान के रूप में झाबुआ पदस्थ हुए। पदभार ग्रहण करने के बाद इनसे भी जिले की जनता को खासी उम्मीदें थी, लेकिन जैन साहब उस तरह से एक्शन में नहीं दिखाई दिए जैसा कि, एक आईपीएस अधिकारी को दिखाई देना चाहिए था। जिले में भूतपूर्व पुलिस कप्तानों की भी लंबी फहरिस्त है जिसमें अच्छे-बुरे सभी शामिल है। मगर याद सिर्फ वही किए जाते है जो जनता के लिए काम करते है। जिला अब भी माफियाओं का गढ़ है। हर तरह की माफियागिरी यहां प्रचलित है। शराब माफिया यहां पूरी तरह से पैर पसारे हुए है। इसके अलावा कई अवैध करोबार जैसे डीजल माफिया, रेत माफिया, नकली डामर प्लांट, नशे का कारोबार, जुआ और सट्टा जिले में चरम सीमा पर अब भी लगातार जारी है। पुलिस कप्तान अगम जैंन की आमद के बाद पिछले दिनों में ऐसी कोई बड़ी हलचल अब तक देखने को नहीं मिली जो जैन साहब की कार्यप्रणाली को स्पष्ट कर सके। सारे अवैध कारोबार अब भी पूर्ववत चल रहे है। हां, मगर साहब के कार्यालय से छुट-पुट कार्यावाही के जारी प्रेसनोट मीडीया में अपनी जगह बना रहे है। हकीकत से कोसों दूर साहब की यह छुट-पुट कार्यवाही ‘‘मूत में मछली मारने’’ वाली ही साबित हो रही है। चूंकि जिला प्रदेश का सीमावर्ती जिला है और दो राज्यों की सीमाओं से लगा हुआ है तो यहां बड़े पैमाने पर शराब व अन्य नशीलें पदार्थों की अवैध सप्लाई लगातार बनी रहती है। हर तरह की तस्करी बड़े पैमाने पर जिले में होती है। लगभग 11 लाख आबादी वाले जिले में अरबों रुपये के शराब ठेके होते है, इससे यह नहीं माना जा सकता है कि, जिले की जनता शराब का सेवन ज्यादा करती है, तो फिर यह स्पष्ट है कि, शराब माफिया अवैध रूप से अन्य राज्यों में शराब का परिवहन करते है। अब एसपी अगम जैन की छुट-पुट कार्रवाई तो ऐसी है मानों समंदर से लौटा भर लिया गया हो। या फिर जैन साहब की भी वही पॉलिसी है कि, कागजों पर रिकार्ड मेंटेन होते रहना चाहिए। बाकि तो जो है सो है ही...।

        वैसे भी यह जिला पूर्व में कई ऐसे आईपीएस अधिकारी देख चुका है जो जिले को प्रयोगशाला समझकर कार्य करते थे। कुछ ने अच्छे कार्य किए तो कुछ बिना पहचान बनाए ही इस जिले से रूखसत हो लिए। अब देखने वाली बात यह होगी कि, अगम जैन अपनी अलग छवि बनाएंगे या फिर वे भी पूर्ववत उन अधिकारियों की तरह गुमनाम समय बिताकर जिले से रवाना होंगे। हालांकि अभी बहुत समय नहीं गुजरा है, उम्मीद है कि, पुलिस कप्तान जैन की तरफ से कुछ जिले को अच्छा देखने को मिलेगा।

नवागत कलेक्टर रंजनीसिंह एवं नवागत एसपी अगम जैन


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