
माही की गूंज, थांदला।
"आजादी कोई उपहार नहीं है, आजादी शहीदों का रक्त है।" गरीब देश वह नहीं है, जिसमें धन-संपदा, संसाधन की कमी है, जिस देश के नागरिकों में देश के प्रति प्रेम भक्ति का भाव नहीं है, वह देश गरीब है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जब महात्मा गांधी को जेल में डाला गया था तब देश के नागरिक स्वयं को नेतृत्व विहीन महसूस कर रहे थे। ऐसे समय में महात्मा गांधी ने ललकार ते हुए कहा था कि, देश का बच्चा-बच्चा नेतृत्व की क्षमता रखता है, अंग्रेजो के खिलाफ तन- मन से लड़ने की तैयारी करो या मरो। आज हमारे समक्ष स्वतंत्रता संग्राम नहीं है लेकिन देश के बच्चे बच्चे को स्वतंत्रता के लिए कार्य करना है। आज हमें लड़ना है- भ्रष्टाचार से, सांप्रदायिक मतभेदों से, तस्करी से, कालाबाजारी से, बच्चों और महिलाओं की बिक्री से, गरीब लाचार लोगों के शोषण से, समाज में व्याप्त छिपे हुए, मुखौटा पहने हुए देशद्रोहियों से। ऐसे जोश, उत्साह एवं ओजस्वी विचार शासकीय महाविद्यालय में शिक्षक सम्मान समारोह के अंतर्गत "झाबुआ जिले के ज्ञात-अज्ञात स्वतंत्रता सेनानी" विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला में मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध इतिहासकार एवं पूर्व प्राचार्य केके त्रिवेदी ने अपने भाषण में व्यक्त किए।
एकदम नौजवान के गर्म लहू की हुंकार के साथ धाराप्रवाह जीवंत चित्रण करते हुए डॉ. केके त्रिवेदी ने स्वतंत्रता संग्राम में झाबुआ जिले के स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में कई अनछुए-अनजाने प्रसंग बताएं। उनमें प्रमुख रूप से थांदला, राणापुर एवं झाबुआ के सर्व श्री कन्हैयालाल वैद्य जिनके लेख देश के प्रमुख तीन समाचार पत्रों में प्रकाशित होते थे, जिनमें वे रियासत के जुल्म अत्याचार को उजागर करते थे। शांतिलाल शर्मा, भगवान कांत शर्मा, कुसुम कांत, वर्दीचंद पोरवाल जो 1932 में प्रजामंडल के प्रथम अध्यक्ष बने आदि का विशेष उल्लेख किया। साथ ही देश के विभिन्न क्षेत्रों में गुमनामी में देशभक्ति का जज्बा दिखाने वाले कई देशभक्तों की जानकारी दी, उनमें से एक प्रसंग बदनाम बस्ती की अदीजनबाई लखनऊ, रसूलन बाई बनारस, राजेश्वरी बाई आदि ने अपना सर्वस्व देश को समर्पित करना चाहा। तब महात्मा गांधी ने उनके धन को यह कह कर लेने से इनकार किया कि वह अपवित्र तरीके से कमाया हुआ धन देश के स्वतंत्रता के पावन यज्ञ में आहुति के योग्य नहीं है। तब उन्होंने अपने सभी साज- घुंघरू, श्रृंगार नदी में प्रवाहित कर भजन कीर्तन का धन अर्जित करके अपना सहयोग दिया।
इसी प्रकार उन्होंने झाबुआ की माटी के सपूत शहीद चंद्रशेखर आजाद के जीवन के अंतिम समय की वास्तविकता पर प्रकाश डालते हुए बताया कि, हमारे देश के ही कुछ प्रमुख गद्दार शंभूनाथ, डालचंद, यशपाल पांडे आदि धन के लालच में आकर अंग्रेजों के षडयंत्र के सहभागी बने और किस तरह आजाद ने अंतिम समय तक अंग्रेजों के साथ ही अपने गद्दारों को ललकारा। इस प्रसंग का बहुत ही सजीव चित्रण करते हुए डॉ. त्रिवेदी को सभागृह में उपस्थित समस्त प्राध्यापक एवं विद्यार्थी मात्र मंत्रमुग्ध से सम्मोहित होकर, सुनते हुए ऐसा महसूस कर रहे थे। जैसे सारी घटना अभी उनकी आंखों के सामने घट रही हो। वाकई में डॉ. के.के. त्रिवेदी का व्यक्तित्व अद्भुत है।
विशेष अतिथि के रूप में डॉ. पीके संघवी (पूर्व प्राचार्य) ने अपने उद्बोधन में शिक्षा, शिक्षक व विद्यार्थियों पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि शिक्षा का लक्ष्य चरित्र निर्माण होना चाहिए यदि चरित्र का विकास नहीं तो ऐसी शिक्षा बेमानी है इसके लिए शिक्षक- विद्यार्थियों में सार्थक संवाद हो।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य डॉ जीसी मेहता ने कहा कि, हमें अपने भारत के गौरवशाली अतीत व महापुरुषों के वीर गाथाओं के बारे में अधिक से अधिक अध्ययन करना चाहिए, जानकारी लेनी चाहिए,ताकि देश के प्रति अपने कर्तव्य जिम्मेदारी का एहसास हमेशा हो। महाविद्यालय परिवार की ओर से शॉल व श्रीफल देकर अतिथियों का सम्मान किया। इसके साथ ही महाविद्यालय से स्थानांतरित होने वाले अतिथि विद्वान डॉक्टर लक्ष्मीकांत कुशवाहा को शॉल एवं श्रीफल देकर विदाई दी।
"मां तुझे प्रणाम योजना" अंतर्गत भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा वाघा अटारी बॉर्डर जलियांवाला बाग हुसैनी बार्डर, भगत सिंह, सुखदेव ,राजगुरु के समाधि स्थल व स्वर्ण मंदिर का भ्रमण कर लौटे, महाविद्यालय के छात्र प्रताप कटारा ने अपने अविस्मरणीय अनुभव साझा किए एवं वहां से अपने साथ लाई गई पावनरज व पवित्र जल अतिथियों सहित महाविद्यालय के प्राध्यापकों को भेंट की।
शिक्षक सम्मान समारोह में महाविद्यालय के डॉ. पीटर डोडियार, डॉ. बीएल डावर प्रो. एच डूबने, डॉ. शुभदा भोसले सहित समस्त स्टाफ एवं बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का संचालन साहित्यिक सांस्कृतिक प्रभारी डॉ. मीना मावी ने एवं आभार प्रो. एसएस मुवेल ने व्यक्त किया।