माही की गूंज, थांदला।
विद्या से विनम्रता आती है, यदि विनम्रता नहीं है तो विद्या का कोई अर्थ नही। फलदार वृक्ष ही झूकता है, इसी प्रकार ज्ञानी विद्वान में विनम्रता आती हैं। वैद्धिक संस्कृति में गुरू को सर्वो परि स्थान प्राप्त हैं। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में शिक्षा के माध्यम से जानकारी का समृद्ध हो रहा है, ज्ञान व नैतिकता में कमी आई है। उपरोक्त विचार महाविद्यालय में विद्यार्थियों द्वारा शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य में शिक्षक सम्मान समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डाॅ. जीसी मेहता ने व्यक्त किए।
डाॅ.पीटर डोडियार ने पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जीवन के प्रेरक प्रसंग बताए। प्रो. एसएस मुवेल ने विद्यार्थियों को ‘‘अप्पो दीपो भवः" सूत्र वाक्य के अनुसार स्वयं अपना गुरू बने, अपना रास्ता तलाश कर अपना लक्ष्य प्राप्त करें। डाॅ. मीना मावी ने नई राष्ट्रीय नीति के संदर्भ में विद्यार्थियों को सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ ही व्यवहारिक व व्यावसायिक ज्ञान प्राप्त करने एवं आत्मनिर्भर बनने हेतु प्रेरित किया। इसी प्रकार प्रो. एच डुडवे, डाॅ. शुभदा भौसले, प्रो. हिमांशु मालवीया, डाॅ. दीपिका जोशी, प्रो. महेश कुमार तिवारी, प्रो. स्वाति नावडे, प्रो. केशरसिंह डोडवे ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए नियमित कक्षा में उपस्थित रह कर शिक्षक विद्यार्थी संवाद के माध्यम से अध्ययन हेतु मार्गदर्शित किया। प्रो. कंचना बारस्कर ने मूर्तिकार रूप में शिक्षक व पत्थर रूप में विद्यार्थियों को गढ़ने की प्रेरक कहानी के माध्यम से संदेश दिया। विद्यार्थियों द्वारा आयोजित कार्यक्रम के सूत्रधार प्रताप कटारा एवं सह पाठियों ने शिक्षकों की महत्ता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का संचालन पूर्व छात्रा कु. पलमा खराडी एवं अजय भाबर ने संयुक्त रूप से किया तथा प्रताप कटारा ने आभार व्यक्त किया। महाविद्यालयीन समस्त स्टाॅफ सहित बडी संख्या में विद्यार्थियों ने सहभागिता की।