माही की गूंज, संजय भटेवरा
तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद में मिलावट का आरोप लगाते हुए आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने अपनी पूर्ववर्ती जगनमोहन रेड्डी के नेतृत्व वाली सरकार पर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ का आरोप लगाया है। जिसके बाद देश के विभिन्न मंदिरो में बिकने वाले प्रसाद की गुणवत्ता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं।
मिलावट किसी में भी सही नहीं कहीं जा सकती है और प्रसाद का सीधा संबंध भक्त और भगवान से जुड़ा रहता है इसलिए मिलावटी प्रसाद न भक्त को स्वीकार है और न ही भगवान भी स्वीकार करते हैं। हिंदू धर्म में प्रसाद का बहुत अधिक महत्व है इसे केवल खाद्य वस्तु नहीं माना जाता है बल्कि भगवान द्वारा भक्त को दिया जाने वाला आशीर्वाद माना जाता है। भक्त द्वारा प्रसाद को भगवान को भोग लगाने के बाद ही पवित्रता और विनम्रता के साथ स्वीकार किया जाता है इसलिए इसको केवल प्रसाद या खाद्य पदार्थ नही बल्कि भक्त और भगवान के बीच भावनात्मक जुड़ाव भी है। ऐसे में तिरुपति बालाजी मंदिर का प्रबंधन करने वाली तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) की बारीकी से जांच की जाना चाहिए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाना चाहिए। क्योंकि यह राजनीतिक मामला नहीं है आस्था से जुड़ा हुआ मामला है। देश के प्रमुख मंदिरों में शामिल तिरुपति बालाजी मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा सबसे अधिक दान (चढ़ावा) दिया जाता है इसलिए इसके ट्रस्ट में फंड की कोई कमी नहीं है। बावजूद सस्ता घी, प्रसाद निर्माण में क्यों उपयोग किया जा रहा है...? यह जांच का विषय है।
वीआईपी दर्शन व्यवस्था पर भी सवाल
देश के प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए वीआईपी दर्शन व्यवस्था है जिसमें श्रद्धालु एक निश्चित रकम की रसीद कटवाकर शीघ्रता से दर्शन कर लेता है। जबकि आम दर्शनार्थियों को घण्टो लाइन में लगकर भगवान के दर्शन का लाभ ले पाता है। इस व्यवस्था को लेकर भी कई सवाल उठ चुके हैं। भगवान के सामने कोई भी व्यक्ति वीआईपी नहीं होता है भगवान के लिए सभी श्रद्धालु बराबर है और भगवान के दर्शन करने का भी सबको बराबर अधिकार है। ऐसे में वीआईपी दर्शन क्यों...?
जिसको लेकर सोशल मीडिया पर कई तरह के कमेंट्स प्रचलित है। कई कमेंट्स में तो लोग यह भी लिख रहे हैं कि, यह वीआईपी लोग भगवान को अपने घर ही क्यों न बुला ले और घर बैठकर ही दर्शन लाभ ले ले!
निश्चित रूप से धर्म, आस्था और श्रद्धा से जुड़ा मामला है और देश के प्रमुख मंदिरों में श्रद्धालुओं की भावनाओं, आस्थाओ और परंपराओं का पूरा-पूरा सम्मान किया जाना चाहिए। मंदिर के प्रसाद में मिलावट और वह भी (बीफ) अगर यह सही साबित होता है तो यह अक्षम्य अपराध है। हिंदू धर्म में पशु, पक्षी और जानवरों की भी पूजा की जाती है। यहां तक की शेर और सांप जैसे घातक जानवरों को पूजनीय माना गया है, भले ही वह मनुष्य के लिए खूंखार व जहरीले हो लेकिन वह भी पूजनीय है। ऐसे में किसी जानवरों की हड्डी से बना घी खाना तो दूर, हाथ में लेना भी वर्जित है। वही देश के इतने बड़े मंदिर के प्रबंधन ने मात्र कुछ रुपए बचाने के लिए इस प्रकार के घी का उपयोग करने की स्वीकृति देने वाले, ऐसे घी को सप्लाई करने वाले तथा ऐसे घी को बनाने वाले तीनों ही इसमें समान रूप से दोषी है। इसलिए अगर जांच में यह दोषी पाए जाते हैं तो इन्हें कड़ी से कड़ी सजा दी जाना चाहिए। साथ ही देश भर के मंदिरों में भी सख्त नियम बनाए जाने चाहिए जिसमें कोई भी श्रद्धालुओं की भावना से खिलवाड़ न कर सके।
साथ ही इस देश में किसी भी खाद्य पदार्थ में मिलावट की रोकथाम करने के लिए भी कड़े कानून न केवल बनाये जाना चाहिए, बल्कि सख्ती से उनका पालन भी करवाया जाना चाहिए। किसी भी चीज में कोई अन्य वस्तु मिलाकर लोगों की सेहत के साथ या किसी की आस्था के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति किसी को भी नहीं होनी चाहिए।