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तेरी जीत से ज्यादा मेरी हार के चर्चे...
09, Dec 2023 1 year ago

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बिना संगठन और किसी बडे मुद्दे के कड़ी टक्कर दी भाजपा को, छोटे चुनावो में लापरवाही पड़ी भारी

माही की गूंज, पेटलावद।

         भले पेटलावद विधानसभा से कांग्रेस प्रत्याशी वालसिह मेड़ा को 5647 के अंतर से हार का सामना करना पड़ा हो। लेकिन वालसिह की हार के बाद भी उनकी हार के चर्चे निर्मला भूरिया की जीत से ज्यादा है। भाजपा जैसे बड़े संगठन के सामने विधायक एन्टी इनकमबेसी रहते हुए भी कड़ा मुकाबला किया। जहां एक ओर भाजपा ने संगठन के कई बड़े नेताओं को मैदान में उतारा, वही कांग्रेस की और से वालसिह मेड़ा उनके पुराने कार्यकर्ताओ के साथ अकेले किला लड़ाते नजर आये। भाजपा के सामने कड़ी चुनौती बनकर उभरने से पहले कांग्रेस में टिकिट के लिए कड़ा संघर्ष करने के बाद अंतिम समय मे टिकिट मिली। वही भाजपा ने अपना प्रत्याशी चुनाव के दो माह पूर्व ही घोषित कर दिया था। वालसिह के सामने अंतिम समय तक बागी उम्मीद्वार सहित जयस ओर बाप पार्टी की चुनौती से निपटने की जिम्मेदारी थी। वही भाजपा के पास कोई बागी या किसी दूसरे दल से कोई खतरा नही था। पूरे चुनाव के दौरान वालसिह मेड़ा के जीत के कयास लगाए जाते रहे। वालसिह के पास सरकार में कांग्रेस आने के बाद के वादे थे, तो निर्मला के पास लाडली बहना योजना, राष्ट्रहित का मुद्दा, मोदी का बड़ा चेहरा, गुजरात सहित अन्य राज्यों से बूथ स्तर तक मैदानी इलाको में काम करने के लिए बड़ी टीम ओर मंडल स्तर के संगठन के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में बड़ा वोट बैंक ,हिन्दू संगठन का सहयोग ओर सत्ता दबाव। इसके बाद भी वालसिंह मेड़ा ने कांग्रेस के कमजोर संगठन के दम पर अकेले किला लडाते हुए भाजपा को मजबूत टक्कर दी। जहा भाजपा के नेता इस बार 25 हजार मतो से जीत के दावे कर रहे थे और पेटलावद विकास खण्ड से बाप पार्टी की उपस्थिति के चलते इस बार भाजपा की जीत के दावे भी किये गए। चुनाव परिणाम में सारे दावे ओर संगठन की हवा निकल गई और वालसिह मेड़ा भाजपा पर भारी दिखे ओर 1400 की लीड के साथ रामा पहुंच गये। मतगणना के 23 में 17 राउंड तक वालसिंह मेड़ा भाजपा पर बढ़त बनाते हुए भाजपा नेताओं को मानसिक रूप से हराने में कामयाब रहे। अंत मे भाजपा का मजबूत क्षेत्र माने जाने वाला पारा-कालीदेवी क्षेत्र भाजपा के लिए परिणाम बदलने में कामयाब रहा और इस क्षेत्र के चार से पांंच बूथों पर मिली बड़ी हार ने वालसिंह के परिणाम बदल दिए। चुनाव परिणाम के बाद हर किसी के पास वालसिह मेड़ा की तारीफ सुनने को मिल रही है जिंसमे कम संसाधनों और मजबूत विपक्षी के सामने कड़ा संघर्ष किया। हालांकि इस हार के पीछे बड़ा कारण बाप पार्टी ही रही, जो कांग्रेस या कहे कि, वालसिंह की उम्मीद् से ज्यादा 8 हजार से अधिक वोट लाने में सफल रही। चुनाव के बाद कांग्रेस में हार के मंथन के ज्यादा कारण नही है। लेकिन वालसिंह के संघर्ष ने भाजपा को मंथन करने पर मजबूर कर दिया कि, इतनी शक्ति, मुद्दे, संगठन, संघ और मोदी लहर के बाद भी भाजपा के वोट बैंक को सेंध एक अनपढ़ विधायक के तमके के साथ उतरगे वालसिंह ने कैसे लगा दी। कांग्रेस के अंतर्कलह से पार पाकर चुनाव के मैदान में उतरे वालसिह मेड़ा भले आंकड़ों का चुनाव हार गए। लेकिन उनके प्रदर्शन ने विपक्षी दल को सकते  में डालकर मानसिक जीत हासिल जरूर की।


स्थानीय चुनाव मैदान में उतरना भारी पड़ा

          वालसिंह मेड़ा के सामने हार के कारणों को लेकर ज्यादा मुद्दे नही है और उनकी हार का सबसे बड़ा कारण स्थानीय जिला पंचायत चुनाव में अपने ही दल के मजबूत कार्यकर्ताओ के विरोध मे उतरकर चुनाव लड़वाना भारी पड़ गया। पेटलावद ओर रामा विकास खण्ड में जिला पंचायत के चुनावों हर सीट पर वालसिंह का हस्तक्षेप उनके लिए हानिकारक साबित हुआ। सबसे बड़ा नुकसान पेटलावद विकास खण्ड में कांग्रेस की जीती हुई, जिला पंचायत सदस्य कलावती गेहलोत को कांग्रेस प्रत्याशी बनवाने की जगह खुद के बेटे को मैदान में उतारना, वही रामा क्षेत्र में भी वालसिह मेड़ा ने स्वयं की बेटी को मैदान में उतार कर कांग्रेस द्वारा घोषित प्रत्याशी प्रियंका डामोर की हार का कारण बनना। बेटे को आगे बढ़ाने और खुद की विधानसभा चुनावों में कोई बडी चुनोती नही मिले इसके चलते स्थानीय चुनावो में अपने ही नेताओं की काट अंतिम समय मे भारी पड़ी। वही टिकिट के दावेदार के रूप में कड़ी चुनौती देने वाले मालू अकमाल के समर्थकों को बागी ओर विरोधी बताकर उनसे दूरी बनाना अंतिम में वालसिह मेड़ा के कड़े संघर्ष पर पानी फेरने के लिए काफी रहा। समय से पहले अगर इस सब से पार पाने के मिले मौके नहीं भुनाना अंत मे वालसिंह की हार का कारण बने।



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