प्रभारी प्रशासन पर पड़े भारी, अतिथि नियुक्ति में बड़ी गड़बड़ी, नो निहालो का भविष्य किनके भरोसे...?
30 बच्चो को पढ़ा रहे छः शिक्षक और पुरे विद्यालय में सामाजिक अध्ययन विषय के आठ शिक्षक
माही की गूंज, पेटलावद।
प्रदेश के साथ ही झाबुआ जिले और ख़ासकर पेटलावद की सरकारी स्कूलों में पढ़ाई एक बड़ी चुनौती है। एक आंकड़े के मुताबिक प्रदेश के लगभग आठ स्कूल ऐसे हैं, जहां सिर्फ एक शिक्षक हैं। वहीं ढाई हजार से अधिक स्कूलों में बच्चे एक अद्दत शिक्षक को तरस हैं। अगर आपकी सेटिंग बढ़िया हो और जिला प्रशासन पंगु तो भी आप कुछ भी कर सकते हो। यहां सीएम राइज स्कूल, मॉडल स्कूल, एक्सीलेंस स्कूल, एजुकेशन फॉर ऑल जैसे उत्कृष्टता के प्रयोग भी कमतर साबित हो रहे है। ऐसे में सवाल उठता है कि, आखिर बच्चे किसके भरोसे स्कूल जाएं। अगर ये स्कूल जाते भी हैं तो इन्हें पढ़ाएगा कौन...? यह स्थिति भी तब है, जब सरकारी दावों के हिसाब से 50 हजार शिक्षकों की भर्ती हो चुकी है। सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की संख्या के हिसाब से भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर सहित अन्य बड़े शहरों की स्थिति भी खराब है। सबसे खराब स्थिति झाबुआ जिले की है। यहां बिना शिक्षक और एक शिक्षक वाले स्कूलों की संख्या सबसे ज्यादा है। इस हिसाब से जिले के पेटलावद की और स्थिति भी दयनीय है। पेटलावद में प्रभारियों के भरोसे चल रही, जो इन स्कूल की पोल खोलने के लिए काफ़ी है। ऊपर से अतिथि भर्ती में हेराफेरी, यहां अतिथि शिक्षकों की भर्ती में बड़ी भूमिका प्रभारियों की रही हैं। नियुक्ति मे परिवारवाद को नियुक्ति देने के आरोप लगते आए हैं और उसकी पोल भी सूचना अधिकार के माध्यम से बाहर आई है। साथ ही ग्रामीण इलाकों के सेटिंग बाज शिक्षको ने सेटिंग बिठाकर जमे हुए हैं कहीं अटैचमेंट के नाम पर तो कहीं प्रतिनियुक्ति के नाम पर, उदाहरण के तौर पर ही हम ले तो सबसे पहले नाम आता है मॉंडल स्कूल पेटलावद का जहां पर जनजाति विभाग के कर्मचारी कुण्डली मार कर अंगद के पैर के माफिक जमे हुए हैं और मजे की बात तो यह है जिन पदो पर ये जमे हुए हैं वो पद पोर्टल पर हैं ही नहीं। मॉडल स्कूलों में हायर सेकेंडरी में वर्ग एक के पद होते हैं उन पदो पर नए शिक्षक आ चुके हैं और बाकि बचे पदो पर भी चहेतों को अतिथि के पदो को भर दिया गया है। कहने को तो जिला कलेक्टर लगातार स्कूलों के दौरे पर रहती है लेकिन सरकारी रेकॉर्ड और व्यवस्था को शायद देखना नही चाहती या फिर स्थानीय अधिकारी कलेक्टर को आसानी से गुमराह कर देते हैं।
30 से 40 बच्चों पर 6 शिक्षक
मिडिल स्कूल में मात्र 30 से 40 बच्चे दर्ज हैं और उन्हें लगभग 6 शिक्षक पढ़ा रहे हैं। मिडिल में मात्र दो पद पोर्टल पर शो हो रहे थे। उनमें से गणित पर नियमित शिक्षक की नियुक्ति हो चुकीं हैं और पद भी भर चुका है। वहीं दुसरा पद अंग्रेजी का हैं उसे भी सेटिंग से प्रभारी ने अपने रिश्तेदार को भौतिकी के नाम पर भर दिया गया है। जबकि मिडिल में इस प्रकार का कोई पद होता ही नहीं। तीसरा पद सामाजिक अध्ययन का हैं पंरतु कम छात्र होने से वो पद पोर्टल पर दिखाई नहीं देता है इसलिए उसे भरा नहीं जा सका। लगभग तीन से चार शिक्षक विगत पांच वर्षो से उन पदो पर जमे हैं जो पद हैं ही नहीं, याने शिक्षक याने वर्ग दो के पद हैं ही नहीं। ये शिक्षक जनजाति विभाग के हैं और इनका वेतन भी जनजाति कार्य विभाग से इनकी पदस्त ग्रामीण संस्था से निकल रही हैं, आख़रि विभाग के जिम्मेदारों को ये दिखाई क्यों नहीं दे रहा है। इन्हे इनके मूल संस्था मे क्यों नहीं भेजा जा रहा जबकि यहां इनकी जरूरत भी नहीं है और ना ही इनके पद। इसी स्कूल के गणित के वरिष्ट अध्यापक को बरवेट मूल संस्था मे प्राचार्य की मांग पर भेज दिया गया है जिससे यहां गणित का पद रिक्त हो गया है और बच्चो की पढ़ाई पर नियमित शिक्षक के चले जाने से प्रतिकुल प्रभाव पढ़ रहा है। वहीं जनजाति विभाग के बाकि शिक्षक यहां पद ना होने के बावजूद जमे पड़े हैं। इस विद्यालय में सामाजिक अध्ययन विषय पर कूल आठ शिक्षक कार्यरत हैं।
अतिथि भर्ती की जांच जरूरी, सरकारी नोकरी की चाह में अपने रिश्तेदारों की भर्ती
अतिथि शिक्षकों के सरकारी नियुक्ति की उम्मीद के चलते लगातार ऐसा देखा जा रहा है कि, संस्था प्रभारी अपनी करीबियों और रिश्तेदारो को भर्ती किया जा रहा है, जिसके लिए नियम कानूनों को ताक में रखा जाता है। जनजाति विभाग के जमे पड़े शिक्षको मे भी कुछ ने प्रभारी प्राचार्य पर दबाव बनाकर अपनें रिश्तेदारों को उपकृत करवाकर अतिथि पदो पर नियुक्ति दिलवा दी वो भी प्रोसिडिंग में गोलमाल कर याने कद्दू कटेगा तो सब मे बटेगा। अगर जांच होती हैं तो बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आयेगा।
वही अगर सीएमराइज स्कूल की बात करे तो यहां के प्राचार्य तो अपनें निर्णयों से प्रसिद्ध है। उन्होंने तो दूसरी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था बिगाड़ कर अटैच मेंट प्रथा प्रारंभ की हैं जबकि पूरे प्रदेश में इस प्रकार की व्यवस्था पर पाबंदी है। वही अतिथि शिक्षकों की नियुक्ति मे भी एक अभ्यर्थी बाली भारद्वाज ने आरोप लगाया है कि, ले देकर सेटिंग जमा कर मेरा नाम ही गायब कर दिया गया साथ ही मेरी जगह नलिनी शुक्ला को नियुक्ति दी गई। उसके दस्तावेजों की जांच किए बगैर नियुक्ति दे दी गई, शिकायत के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं की गई। जबकि उस व्यक्ति द्वारा फर्जी तरीके से एक तरफ नियमित अतिथि के रूप में नौकरी की और दूसरी तरफ पचास किलो मीटर दूर नियमित बीएड की डिग्री हासिल कर ली जो दोनों एक साथ होना सम्भव नहीं है। इसी प्रकार का फर्जीवाड़ा एकलव्य स्कूल पेटलावद में पूर्व प्रभारी द्वारा फर्जीवाड़ा कर, ले देकर कुछ अतिथियों की नियुक्ति की थी। गड़बड़ी का खुलासा सूचना अधिकार में निकली जानकारी मे हुआ था। पेटलावद विकास खण्ड की इन बड़ी स्कूलों में अतिथि भर्ती में गड़बड़ी सामने आने और शिकायत के बाद भी कोई कार्यवाही ना होना बताता है कि, पूरी व्यवस्था में दीमक लग चुकी हैं।
लम्बे समय से अटैच एक शिक्षक को आखिर संकुल प्राचार्य की मांग पर मूल संस्था में भेजा।
स्कूलों के दौरों पर हरा-हरा देख कर निकल जाती है जिला कलेक्टर, फाइल फोटो।
कलेक्टर की ये कैसी जांच जिसमे लापरवाही कभी सामने नही आई, फाइल फोटो।