Contact Info
विधायक वालसिंह मैडा पहुंचे श्रीमद् भागवत कथा श्रवण करने, 2 लाख 51 हजार रुपए देने की कि घोषणा



माही की गूंज, बनी।
क्षेत्रीय विधायक वालसिंह मैडा ने ग्राम बनी में सरस्वती शिशु मंदिर निर्माण हेतु आयोजित सप्त दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण किया। कथा विराम होने के पश्चात विधायक वालसिंह मैडा ने व्यास गादी पर आसीन आचार्य देवेंद्र जी शास्त्री के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। विधायक मैडा ने सभी कथा श्रवण करने वालो को कथा की महिमा बताई और व्यास पीठ पर विराज मान आचार्य देवेंद्र जी शास्त्री को भगवान के स्वरूप बताया।
विधायक वालसिंह मैडा ने सरस्वती शिशु मंदिर निर्माण के लिए 2 लाख 51 हजार रुपए देने की घोषणा की, जिसका सभी कथा सुनने आए लोगो ने तालिया बजाकर स्वागत किया। आचार्य देवेंद्र जी शास्त्री ने भी प्रसन्न होकर वालसिंह मैडा का हार माला पहनाकर स्वागत किया और आशीर्वाद देते हुए कहा कि, आपकी कीर्ति पूरे क्षेत्र में हमेशा बनी रहे।
भगवान श्री हरिहर भक्त के भाव में निवास करते हैं- आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री
हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे..., हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे..., जय श्री कृष्ण....। पेटलावद अंचल के ग्राम बनी स्थित में इन दिनों ये मंत्र गूंज रहे हैं। आयोजित श्रीमद्भागवत भक्ति रस महोत्सव के दूसरे दिन शुक्रवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटी। व्यास पीठ से प्रवचन करते हुए भागवत भूषण आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री ने श्रद्धालुओं को जीवन के प्रयोजन का मर्म बताया। कहा कि भागवत कथा श्रवण मनोरंजन नहीं, मन का कल्याण है। जीवन ही नहीं हर चीज के होने का प्रयोजन है। जीवन का प्रयोजन क्या है, यह समझ में जाए, तो उसी दिन से आदमी लक्ष्य की पूर्ति में लग जाए। संतों की वाणी सत्य है, यह मानना श्रद्धा की बात है। मानो तो देव नहीं तो पत्थर। यह सब मानने वाले की श्रद्धा का मामला है। पत्थर में भगवान जाते हैं, भक्तों के भाव से। वक्ता के मुख से श्रोताओं का भाव बोलता है। इसमें विद्वता का कोई मतलब नहीं। बस! व्यास पीठ पर बैठने वाला शुद्ध पवित्र रहे*।
चरैवेती चरैवेती...
जीवनचलने का नाम है। चरैवेती चरैवेती। नदी की तरह बहते रहो। स्वस्थ रहोगे। एक बार ब्रह्मा जी को जिज्ञासा हुई कि कमल के फूल के मूल में क्या है। तब वे कमल की नली से नीचे उतरे। इसका तात्पर्य चिंतन-मनन से है। अगर कुछ जानने की जिज्ञासा हमारे अंदर नहीं होती, तो धर्म का उदय ही नहीं होता। हर मनुष्य के मन में यह सवाल होना चाहिए कि मेरा जन्म क्यों हुआ है? यह बात मन में बैठा लो, जो कुछ होता है उसका कुछ कुछ कारण होता है।
अच्छा होने का अभिमान अच्छा नहीं
आचार्य श्री ने कहा कि, अच्छा होना अच्छी बात है, लेकिन अच्छा होने का अभिमान अच्छा नहीं है। दान करनेवाले काे जब खुद के त्यागी और दानी होने का अभिमान होने लगता है तब वह दुर्गुण की श्रेणी में जाता है। इससे सावधान रहने की आवश्यकता है। खासतौर से वेसे लोगों को जो अपने आप को सबसे अच्छा या सरल समझते हैं। बहुत वेद पढ़ लेने से कोई विद्वान नहीं हो जाता। अज्ञान में भटकने वाले लोग घोर अंधकार में चले जाते हैं। लेकिन, जो ज्ञान की उपासना करते हैं, विद्या की आराधना करते हैं, वे और घोर अंधकार में भटकते हैं। आखिर ऐसा क्यों? इन्हीं बातों को समझने के लिए सद्गुरु की जरूरत होती है। इस अवसर पर विधायक वालसिंह मैडा, सुरेश पाटीदार, जीवन पाटीदार, राधेश्याम पाटीदार, पुरसोतम पाटीदार, राजू गुप्ता, आकाश डामोर रायपुरिया, सरस्वती शिशु मंदिर समिति के सभी सदस्य मुकेश पाटीदार आदि उपस्थित थे।
धर्म और विज्ञान में अंतर बताया
उन्हाेंने कहा कि मती की जिज्ञासा की जब पूर्ति हो जाती है, तो वह बुद्धि का रूप ले लेती है। मति सती हो सकती है, लेकिन वह श्रद्धा का रूप ले ले। धर्म भी मानने की चीज है। विज्ञान मान्यताओं पर विश्वास नहीं करता है। विज्ञान अनुसंधान करता है। अध्यात्म पहले मानता है, स्वीकार करता है, तब अनुभूति की यात्रा करता है। जबकि विज्ञान अनुसंधान की यात्रा करता है और उससे जो निकलकर आता है, उसे ही मानता है। विज्ञान की यात्रा बाहर की ओर होती है और धर्म-अध्यात्म की यात्रा अंदर होती है। धर्म और विज्ञान में यही अंतर है।
जो पढ़ने से तुम्हारी रक्षा करता है, वह मंत्र है। भागवत स्रोत मंत्र है। हर ग्रंथ व्यक्ति का अपना इतिहास है। भागवत संसार के भय से रक्षा करता है। ज्ञान, वैराग्य, प्रेम आदि का मतलब बताता है। भक्ति इसकी शक्ति है। अास्तिक नास्तिक शब्द पर प्रकाश डाला और कहा कि वेद सम्मत है, वह आस्तिक और जो वेद को स्वीकार नहीं करता, वह नास्तिक है। यहां वेद को ही प्रमाणभूत माना गया है। प्रेम पर चर्चा करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि प्रेम शब्द बहुत ऊंचा है। प्रेम सिर्फ आकर्षण नहीं है। स्वार्थरहित निर्भयता ही प्रेम है। वासना और प्रेम के बीच बड़ा अंतर है।कथा विराम के बाद सामूहिक आरती का आयोजन रखा, जिसमे विधायक वालसिंह मैडा ने भी आरती का लाभ लिया। आरती सम्मान के पश्चात राधेश्याम डॉक्टर ने दुबारा आभार व्यक्त किया।

