नगर में सार्वजनिक स्थानों के लगातार हो रहे निजी नामकरण
माही की गूंज, पेटलावद
किसी मार्ग, स्थान, भवन या फिर किसी स्थान का नाम किसी व्यक्ति या संस्था के नाम पर रखने या बदलने के लिए लंबी लड़ाइयां लड़नी पड़ती है या ऐसे कार्य करना होते है जो आपकी पहचान के साथ-साथ देंखने-सुनने वालों के लिए कोई सीख या सबक दे जाये। आज़ादी से लेकर आज तक कई ऐसे महान लोग रहे है जिनका इतिहास में कोई जिक्र नही ओर कई ऐसे नाम भी है जो आज तक उपलब्धि पाने के लिए पीढ़ियों से संघर्ष कर रहें है। अक्सर सरकारी भवनों, सरकारी सार्वजनिक स्थानों, मार्गो, चैराहों आदि का नाम ऐसी ही विभूतियों के नाम पर किया जाता है जिन्होंने देश के अपने क्षेत्र, समाज के लिए कुछ किया है लेकिन बदलते स्वरूप ने शासन की इस मानसिकता की स्थानीय स्तर पर स्वयं के निर्णय पर छोड़ दिया। शायद इसलिये डेकोरम ओर दिखावे के झांसे में आकर सार्वजनिक स्थानों ओर किसी की भी नेम प्लेट चिपकाने की खुली छूट दे दी। शायद वर्तमान में इसका इतना प्रभाव देखने को नही मिले, लेकिन भविष्य की आने वाली पीढ़ियों के सामने सार्वजनिक स्थानों पर चस्पा हुए ये नाम ही थोप दिए जायेंगे। उनका इतिहास सिर्फ इतना होगा कि, तत्कालीन अधिकारी का किया हुआ है बस...? विगत दिनों जिले के पूर्व कलेक्टर भी अपने अल्प कार्यकाल में नगर को ऐसी एक अनचाही सौगात दे गई जिसकी उम्मीद किसी ने नही की थी। एसडीएम कार्यालय भवन के सामने खाली पड़े परिसर को एसडीएम अनिल कुमार राठौर ओर स्थानीय सरकारी एजेंसियों के माध्यम से चमका रहे है, जिसका दौरा पूर्व कलेक्टर राजनिसिंह ने किया और बाद में पीआरओ ने इस दौरे को लायंस उघायान बताया। जारी प्रेस रिलीज में भी इस सरकारी स्थान को लाइंस उघायान ही बताया गया। सवाल खड़े भी हुए लेकिन कोई सफाई पेश नही की गई न ही इस बड़ी भूल को सुधारा गया और नगर के बीचों-बीच एक निजी संस्था का नाम बिना किसी कारण चस्पा कर दिया गया। इसी परिसर में लगा शहीद स्मारक भी इसके पूर्व जीर्णोद्धार के नाम पर निजी परिवार का लगभग बन चुका था। बकायदा जीर्णोद्धार करने वाले ने अपने परिवार का शिलालेख इस स्मारक के बीचों-बीच चस्पा कर दिया जिसे विरोध के बाद हटाया गया, लेकिन परिवार विशेष का पत्थर आज भी स्मारक के आगे खड़ा है।
नगर के मुख्य चैराहे सहित कई स्थानों पर नाम लिखकर कब्जा करने जा प्रयास किया जा रहा है। नगर में कई स्थान ऐसे है जहां नगर को सुंदर बनाने, सुविधा देने या फिर आज़ादी का महोत्सव को यादगार बनाने के नाम पर सार्वजनिक स्थानों का नाम निजी संस्थानों के नामकरण कर सरकारी और सार्वजनिक स्थानो परं कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन और एजेंसी बिना किसी प्रस्ताव के ऐसी संस्थाओं का नामकरण कर दिए गए, जो निकट भविष्य में नगर की पहचान बन सकते है।
पैसा एक्ट लगने के बाद भी आदिवासी जन नायकों के नामकरण के लिए संघर्ष
जिले में पैसा एक्ट लागू हो चुका है, उसके साथ ही देखने मे आ रहा है की कई आदिवासी संगठन सरकारी भवनों का नाम आदिवासी जननायकों के नाम पर रखने की मांग की जा रही है, तो कई जगह आदिवासी संगठनों को संघर्ष करना पड़ रहा है। उसके उलट नगरीय क्षेत्रों में डोकोरम वाली संस्थाओं को कभी भी कही भी नाम चिपकाने का अधिकार दे दिया जाता है।