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राजनीतिक हलचल...
Report By: राकेश गेहलोत 18, Mar 2023 2 years ago

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सिटिंग एमएलए होने के नाम पर टिकिट मांग रहे विधायक मेंडा, पंद्रह माह की सरकार में दिए साथ की दे रहे दुहाई

खुद के खोदे गड्डो में गिर सकते हैं विधायक, मिल रही टिकिट के लिए कड़ी चुनौती

माही की गूंज, पेटलावद।

          साल के अंत होते-होते ये तय हो जाएगा कि, प्रदेश के सिंहासन पर कौंन बैठेगा और किसकी सरकार बनेगी। लेकिन 15 साल बाद 15 माह के लिए प्रदेश में वापसी करने वाली कांग्रेस और जैसे-तैसे प्रदेश में सरकार में लौटी भाजपा ने चुनाव की तैयारियों शुरू कर दी है। 2018 के चुनाव के मुकाबले ये चुनाव और दिलचस्प होना है तय है। आदिवासी वोटो से प्रभावित सीटो पर जयस जैसे संगठनों की मजबूत उपस्थित और भोपाल की एक जनसभा में मध्यप्रदेश कीं सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर आम आदमी पार्टी जो गुजरात चुनाव में अपने प्रदर्शन से कांग्रेस के लिए मुसीबत बन गई और कांग्रेस के सत्ता में वापसी के रास्ते मे रोड़ा बन गई। गुजरात के नतीज़ों से प्रभावित कांग्रेस मध्यप्रदेश में चुनाव लड़ने की नई रणनीति के साथ मैदान में उतरने की तैयारी में, तो भाजपा, जयस और आम आदमी पार्टी की उपस्थिति से फायदा उठाने की रणनीति जुट गई।

          वर्तमान में जिले की तीनों विधानसभा कांग्रेस के खाते में है। पेटलावद विधानसभा से विधायक वालसिंह मैडा फिर इस सीट से मैदान में उतरने की तैयारी करते नजर आ रहे हैं और कांग्रेस से चौथी बार टिकिट की मांग कर रहे है। हालांकि इस बार वालसिंह मेंडा के लिए हार या जीत से बडी चुनोती कांग्रेस से टिकिट लाने की होगी। वर्ष 2008 में विधायक मैंडा पहली बार भाजपा के बागियों की उपस्थित के कारण जीते। तो 2013 में वालसिंह को हार का सामना करना पड़ा। 2018 में फिर से सरकार परिवर्तन की हवा और एंटी निर्मला ग्रुप के विरोध के चलते लगभग पांच हजार के मामूली अंतराल से जैसे-तैसे जीत मिली। परिमाण में नोटा वोट की संख्या हार-जीत के अंतर के बराबर थी, जो प्रदेश में हुई वोटिंग में सबसे ज्यादा नोटा वोट वाली विधानसभा में से एक रही थी। पेटलावद विधानसभा में चुनाव सिटिंग एमएलए के खिलाफ एन्टी इनकम्बेंसी होती ह,ैं जिससे बचने का एक मात्र तरीका चेहरा बदल कर मैदान में उतरना हो सकता है। वर्ष 2008 में सिटिंग विधायक निर्मला भूरिया को हार मिली। तो 2013 में विधायक वालसिंह मैडा को तो 2018 में फिर से विधायक निर्मला भूरिया को हार का समाना करना पड़ा। रोटेशन को देखा जाए तो कांग्रेस अगर वालसिंह के साथ ही मैदान में जाती है तो परिणाम विपरीत होने की संभावना है। हॉलाकि हर बार की तरह ये चुनाव निर्मला ओर वालसिंह के इर्दगिर्द ही नही बल्कि नए चेहरों की मांग के बीच नए दावेदारों के आसपास तक पहुच चुका है। जहां भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस में भी ताकतवर नए चेहरे को विकल्प के रुप मे मौजूद हैं।

स्थानीय चुनाव में परिवारवाद से नाराज़ नेता

          टिकिट की जुगाड़ में घूम रहे वालसिंह इस बार मुश्किल में नजर आ रहे हैं, जो खुद के खोदे गड्डो में गिर सकते हैं। विधायक साहब के इस कार्यकाल में हुए स्थानीय चुनाव में अपने गृह क्षेत्र को छोड़कर बेटे को जिला पंचायत चुनाव, पेटलावद क्षेत्र से लड़वा दिया, जिससे स्थानीय कांग्रेस नेताओ को चुनाव मैदान में नुकसान उठाना पड़ा। वही खुद के गृह क्षेत्र में कांग्रेस समर्थित होकर मैदान में उतरी कांग्रेस के कद्दावर नेता रूपसिंह डामोर की पुत्री के सामने विधायक ने खुद की पुत्री को मैदान में उतारकर कांग्रेस को चुनाव हरवा दिया। बताया जा रहा है कि, खुद के बेटे की जीत के चक्कर मे विपक्षियों से भी साठ-गांठ कर दूसरे क्षेत्रों में भाजपा को वनवे कर दिया। पेटलावद जनपद अध्यक्ष पद को लेकर भी विधायक मैंडा असहयोग के चलते जनपद में भी कांग्रेस को करारी हार मिली। यहां जयस द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष के दावेदार को समर्थन दिया था, लेकिन विधायक ने जयस को भी निराश किया क्योकि उपाध्यक्ष पद को लेकर समझौता हुआ था।

वालसिंह को टिकिट, तो जयस होगी स्वत्रंत मैदान में

         2023 के विधानसभा चुनाव में जयस संगठन की भूमिका महत्त्वपूर्ण रहेगी ये तय है। जिस प्रकार से जयस तैयारी कर रही है, जयस चुनाव मैदान में हो सकती है। वही भाजपा और कांग्रेस से टिकिट की दावेदारी स्वीकार होने पर समझौते की चर्चा है। कांग्रेस की और से अगर वालसिंह मैडा को टिकिट मिलती है, तो जयस स्वतंत्र रुप से मैदान में उतरेगी जो कांग्रेस के लिए परेशानी का सबब है। हालांकि कांग्रेस उसी चेहरे को मौका देने का मन बना रही हैं जो जयस संगठन से पटरी बैठा ले।

15 माह की सरकार में दिए साथ की दुहाई देकर टिकिट के लिए बना रहे दबाव

          2018 के चुनाव में सरकार में आई कांग्रेस को भाजपा ने जैसे-तैसे सरकार से बाहर कर दिया था। इस दौरान कांग्रेस के कई विधायक भाजपा में शामिल हो गए। चर्चा पेटलावद के विधायक वालसिंह मैडा के भी भाजपा में जाने की हुई थी, लेकिन अंत मे कांग्रेस वालसिंह को रोकने में कामयाब रही थी । उसी समय मे कांग्रेस के साथ देने के नाम पर वर्तमान विधायक कांग्रेस पर 2023 में टिकिट के लिए मांग कर रहे हैं। विधायक मैडा की ग्राउंड रिपोर्ट और पूरे कार्यकाल में एक बार भी विधानसभा में कोई सवाल प्रदेश की जनता के लिए नही कर पाए न ही इस कार्यकाल में क्षेत्र को कोई बड़ी उपलब्धि नही दिला पाए। कृषि कॉलेज से लेकर नहर वंचित गाँवो तक नहर पहुचाने सहित कई बड़ी उपलब्धियो की आवश्यकता क्षेत्र को हैं। जिसके लिए विधायक आज तक कोई मांग करते नही दिखे।



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