गरीब आदिवासी का पैसा एक्ट क्या करे जब पुलिस ही नही करे कार्रवाई
15 दिन से पुलिस थाने पर भटक रहा नाबालिक का पिता, न हुई कार्रवाई न मिली नाबालिक बेटी
माही की गूंज, पेटलावद।
बड़े-बड़े दावों ओर वादों के साथ प्रदेश में पैसा एक्ट लगया गया उसके प्रचार के लिए गाँव-गाँव फलिए-फलिए सरकारी खर्चे से टेम्पू घुमा कर प्रचार-प्रसार कर कानून की जानकारी दी जा रही है। दूसरी ओर नाबालिग और महिला अत्याचार को लेकर देश की संसद में बड़े-बड़े कानून बनाए गए हैं। लेकिन सारे कानून झाबुआ जिले के थाने, चौकी और प्रशासन की दहलीज पर आकर दम तोड़ देते हैं और यहां चलता है पुलिस अपना कानून। यहां की पुलिस इतनी तेज तर्रार है कि 24 घन्टे में गाड़ी तो पुलिस खोज लेती हैं लेकिन जिंदा 17 वर्ष की नाबालिक को खोजना तो दूर उसके अपहरण का मामला तक दर्ज नही करती हैं।
15 दिन से परेशान नाबालिक का पिता पुलिस ने नही दर्ज की रिपोर्ट
पेटलावद थाना क्षेत्र के ग्राम बड़ी देहण्डी निवासी गुंडिया भूरिया ने थाना पेटलावद में लिखित आवेदन प्रस्तुत कर रिपोर्ट दर्ज करवाई कि, मेरी नाबालिग पुत्री का नाम नेहा (बदला हुआ नाम) होकर उसकी जन्म तारीख 5 अप्रेल 2005 है और कक्षा 11 वी में करवड़ में पढ़ती थी, वो 28 दिसम्बर 2022 से गायब है। पीड़ित पिता ने आवेदन में उस व्यक्ति का नाम भी उल्लेख किया जिसके द्वारा आवेदक की नाबालिग पुत्री को जबरन अगवाह किया गया। आवेदन में नाबालिग के पिता ने बताया कि, विपक्षी जोकि आए दिन उसकी नाबालिक लड़की का पीछा करता था और उसे धमकी देता था तथा 15 दिन पूर्व भी मेरी पुत्री को जबरन उठाकर ले जाने की धमकी भी दी थी। विपक्षी द्वारा दिनांक 28 दिसम्बर 2022 को मौका देख कर जब हम लोग खेत पर थें और मेरी नाबालिग पुत्री घर पर अकेली थी उस उक्त विपक्षी मेरे घर से मेरी नाबालिग पुत्री को जबरन बलपूर्वक उठाकर ले गया है। हम लोग सुबह घर पर आए तो मेरी पुत्री नेहा घर पर नहीं थी। उसकी सभी दूर तलाशी की तो मालूम पड़ा कि, विपक्षी उसे मेरे यहां से जबरन उठाकर ले गया हैं। जिसकी जानकारी मिलने पर तुरंत विपक्षी के विरुद्ध नाबालिग पुत्री को बंधक बनाकर रखने तथा उसकी इज्जत व जान का खतरा होने की रिपोर्ट दिनाक 29 दिसम्बर 2022 को थाना पेटलावद को दर्ज कराई। घटना 28 दिसम्बर की है और 29 दिसम्बर को पुलिस के पास जानकारी पहुँच गई लेकिन लड़की के नाबालिक होने के बाद भी पुलिस ने नामजद आवेदन पर कार्रवाई करना तो दूर आज दिनांक तक नाबालिक के अपहरण तक का मामला दर्ज नही किया।
एसडीओपी कार्यकाल में लगाई गुहार
थाना पेटलावद से किसी प्रकार की कार्रवाई नही होने पर नाबालिक पुत्री के पिता ने एसडीओपी (पुलिस) को आवेदन पेश कर मामले में तुरंत कार्रवाई कर नाबालिक पुत्री को ढूंढने और उसका अपहरण करने वाले के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की।
नाबालिक के पिता ने बताया कि, आवेदन थाने पर दिए 15 दिन हो गए लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नही की। थाने पर जाने पर पुलिस कहती हैं कि, हम कार्रवाई कर रहे हैं तुम आपस में बैठकर समझौता कर लो बाद में भी समझौता ही करना है तो पहले ही कर लो। ऐसा बोल कर टाल देती हैं। इसलिए एसडीओपी को आवेदन देकर न्याय की गुहार लगाई है।
भांजगडी प्रथा की भेंट चढ़ते है बड़े से बड़े अपराध
जिले की जो व्यवस्था है पुलिस उसके हिसाब से काम करती हैं। यहां बड़े से बड़े अपराध भी आपसी में बैठ कर निपटा दिए जाते, जिसमे पुलिस बिचौलियों की भूमिका में होती है, जिसका मुख्य उद्देश्य अपराध कम करना है। लोगो को समझना नही वरन समझौते में होने वाले लेन-देन में बड़ा हिस्सा लेने और पुलिस रिकॉर्ड में अपराध कम दर्ज कर अपना ट्रेक रिकॉर्ड अच्छा रख कर सिविल बड़ाने का होता है। ऐसे में कोई अपराध दर्ज करवाना चाहता भी हो तो उस पर पुलिस द्वारा समझौते का तब तक दबाब बनाया जाता है जब तक मामला बढ़ नही जाए या आपसी प्रेम प्रसंग दिखने वाला मामला किसी घिनोने अपराध के रूप में सामने नही आ जाए। समझौतों से होने वाली आमदनी के चक्कर मे पुलिस बालिग-नाबालिक तक नही देखती और पुलिस की कार्यप्रणाली के कारण महिला और नाबालिक लड़कियों के खिलाफ अपराध बढ़ते हैं।
क्या कहता है कानून
नाबालिक बच्चों के प्रति बढ़ते अपराध को केंद्र और राज्य सरकार गंभीरता से लेते हुए कानून बनाती हैं। जिससे अपराधीयो को कानून का भय हो और अपराध करने वालो को कड़ी सजा मिल सके। नाबालिक लड़की को लेकर कानून कहता है कि, नाबालिग लड़की के गायब होने की सूचना पर 24 घन्टे के भीतर आईपीसी की धारा 363 और नामजद रिपोर्ट होने पर 363 व 366 की धारा में अपरहण की कायमी कर विवेचना में लेना होता है। जिसके बाद नाबालिक के बरामद होने पर उसके बयान के आधार पर धाराएं बढ़ाई जाती है जिंसमे पास्को एक्ट भी शामिल हैं। देश के कानून अलग और जिले की पुलिस के कानून अलग होने के कारण यहां बालिग-नाबालिक कोई मायने नही रखते। यहाँ सिर्फ पुलिस का अपना खुद का भांजगडी कानून चलता है। जब तक अपराध दर्ज नही होता पुलिस उसे विवेचना में नही लेती ओर अपराध दर्ज नही होने की दशा में विपक्षी से साठ-गांठ लडक़ी को पेश कर आपसी समझौता कर मामले को रफा-दफा कर देती है। जबकि प्रथम रिपोर्ट दर्ज होने के बाद लड़की को बरामद करने के बाद भी पीड़ित परिवार के चाहने पर आपसी समझौता करवाया जा सकता है। लेकिन पुलिस अपराध संख्या और बाद कि न्यायालिक प्रक्रिया से बचने के लिए देश के कानून को ताक में रख कर खुद का कानून चलती हैं।