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साला मैं तो साहब बन गया, मैं जो कहूं वही सही बाकी सब गलत... 3
तहसीलदार साहब की कारस्तानी ऐसी की स्थानीय या कोई छोटा खनन करे तो गुनहगार और कोई बाहरी व बड़ा खनन करें तो साहूकार
साहब की मनमानी वाली कारस्तानी से क्षेत्र में चर्चा हो रही की क्या 8 लेन वाले नायब साहब के बाप लगते है या कोई रिष्तेदार...?
माही की गूंज, खवासा।
प्रदेश व केंद्र सरकार की योजना में एक योजना मुख्यमंत्री आवास योजना व प्रधानमंत्री आवास योजना भी मुख्य रूप से धरातल पर संचालित हो रही है यह सही है। और देश के प्रधानमंत्री का भी सपना है कि, हर निचले स्तर तक के व्यक्ति का एक पक्का मकान हो और इसी उद्देश्य के साथ सरकार ने अपनी आवास योजना लागू की। यह भी तय है कि, चाहे वह छोटे तबके का व्यक्ति हो या कोई वीआईपी अपना आशियाना मकान के रूप में बनाता है या फिर चाहे मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मंजूर हुई सरकारी राशि से भी कोई व्यक्ति अपना मकान बनाता है। लेकिन इसमें मकान की नींव निर्माण के साथ ही मकान बनाने में प्रशासनिक दोहरे रवये का सामना करते हुए परेशान होना पडता है। सर्वप्रथम मकान की नींव रखने हेतु गड्ढे खोदने के साथ जमीन के समतलीकरण के लिए मोरम की आवश्यकता सरकारी योजना में मिले मकान का व्यक्ति हो चाहे कोई वीआईपी उसे होती ही है और मोरम के साथ समतलीकरण के बाद ही मकान का निर्माण किया जाना संभव होता है, यह हर कोई जानता है
यह भी सही है कि, हमारी सभी शासकीय व्यवस्थाएं अलग-अलग विभागों के साथ बटी हुई है और कोई भी कार्य हमें उन सरकारी व्यवस्थाओ व नियमों के आधार पर ही करना होता है। लेकिन बात यहां आती है कि, कुछ सरकारी व्यवस्थाए ऐसी है कि, एक आम व्यक्ति को उस कार्य को नियमों के आधार पर करना संभव नहीं होता हैं। इस स्थिति में सरकार व सरकार के तंत्र को चाहिए कि, सरकारी व्यवस्थाऐ जो मूलभूत व्यवस्थाओ से जुड़ी है, वह व्यवस्था एक नीचे तबके के व्यक्ति को भी सुचारू रूप से सरकारी नियमों के आधार पर स्थानीय स्तर पर ही न हो तो पंचायत के माध्यम से व्यवस्थाएं व सुविधाएं मिलना चाहिए। ऐसा होने पर तय है एक आम व निचे तबके का व्यक्ति भी अपने मूलभूत कार्य नियमों के आधार पर ही करेगा।
हम आज बात कर रहे हैं एक छोटे तबके से लेकर बड़े तबके का व्यक्ति ही क्यों न हो वह अगर मकान का निर्माण करता है तो उसे नींव भराई के साथ मकान का समतलीकरण करने हेतु मोरम की आवश्यकता पड़ती ही है। और कोई भी व्यक्ति अपना मकान निर्माण का कार्य करता है तो उस समय इस महंगाई के साथ 100 रुपये तक मिलने वाली सीमेंट की बोरी 400 रुपये होने पर व सरिया एक न्यूनतम भाव के साथ अधिकतम 100 रुपये प्रति किलो के करीब तक कीमत हो जाने पर भी इस बढ़ती महंगाई के साथ मकान निर्माण करने वाले व्यक्ति ने बाजार मूल्य के साथ निर्माण सामग्री खरीद कर अपना मकान निर्माण का कार्य किया है। हमारा सवाल यहा यह है कि, जो व्यक्ति 100 रुपये में मिलने वाली सीमेंट 400 सौ रुपये तक व 30 रुपये से लेकर 100 रूपये के करीब भी सरिया खरीद कर अपना आशियाना बना सकता है, तो क्या एक मकान बनाने वाले व्यक्ति को अपने नींव भरने के साथ समतलीकरण के लिए मोरम की रॉयल्टी नही भर सकता है क्या...?
हमारा जवाब यहां यह है कि, आम व्यक्ति को अगर स्थानीय स्तर पर खनिज विभाग की गाइडलाइन के साथ मकान बनाने के लिए ऐसी व्यवस्थाएं पंचायत स्तर पर भी हो जाए कि, वह अपनी रॉयल्टी भरकर अपना मकान निर्माण कर सके। लेकिन ऐसी व्यवस्था नहीं होने पर सरकारी योजना में मिले आवास हो या निजी रूप से बनाने वाले मकान निर्माण के लिए बिना रॉयल्टी से मोरम लाने को मजबूर होना पड़ता है और हमारी अफसरशाही ऐसी है कि, इस तरह से कोई मकान निर्माण करने के लिए मोरम लेकर आता है उस पर कार्रवाई कर दी जाती है और 10-20-30 या 50 ट्राली मोरम खोदने वाली मशीनों को टारगेट बनाकर अफसरशाही अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती है। लेकिन इन अफसरशाही को कोई बड़ा व्यक्ति जो इन्हें प्रतिमाह लाभ भी पहुंचाता है उसे अवैध खनन करने के साथ मोरम बेचने की अनधिकृत परमिशन भी दे देता है। यह आम लोगों के साथ भेदभाव पूर्ण कार्रवाई हर जगह देखने को मिल सकती है।
परंतु हम खवासा व क्षेत्र की ही बात करें तो खवासा क्षेत्र से होकर 8वें दिल्ली-मुंबई सड़क निर्माण का कार्य हुआ। जिसमें नियमानुसार सड़क निर्माण में मोरम हेतु निर्धारित खदानें आवंटित कर रॉयल्टी के साथ खदानों से मोरम सड़क निर्माण हेतु ले जाना था। लेकिन स्थानीय प्रशासनिक तालमेल से निर्धारित खदानों के अलावा भी अन्य जगहों से मोरम का लाखो हीं नही करोड़ों घनमीटर बिना रॉयल्टी के सड़क निर्माण हेतु मोरम ले गए, जिन पर कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई। वहीं यह सड़क निर्माण कंपनी के नुमाइंदे अवैध खनन कर सड़क निर्माण में मोरम ले जाने के साथ ही बाजार में भी डम्परो से मोरम को बेचा गया पर खवासा के नायब तहसीलदार अनिल बघेल ने आंखें मूंद 8लेन के नुमाइंदों को अनाधिकृत रूप से मोरम बेचने की परमिशन दे दी। नतीजन हाल ही में डॉक्टर चंपालाल पाटीदार के मकान, सत्य साईं स्कूल के नवनिर्माण के साथ हर किसी को क्षेत्र में मोरम बेचा जा रहा है।
इस संबंध में भ्रष्ट व रिश्वतखोर नायब तहसीदार अनिल बघेल से कोई चर्चा करता है तो, साहब कार्रवाई करने के बजाय कहते हैं जरूरतमंदों को दे रहे होंगे, यानी साहब उसी बात को चरितार्थ कर रहे हैं कि, “साला मैं तो साहब बन गया और मैं जो कहूं वही सही बाकी सब सब गलत...“।
क्षेत्र के एक सरपंच से चर्चा होने पर गूंज को बताया कि, 8लेन में कार्य करने वाले कर्मचारी बड़े पैमाने पर अवैध खनन कर डम्परो से दिन-दहाड़े ही खवासा सहित क्षेत्र में मोरम बेच रहे हैं तो साहब आप कार्रवाई क्यों नहीं कर रहे हो..? नायब तहसीलदार अनिल बघेल से कहा तो, बघेल साहब ने कार्रवाई करने के बजाय कह दिया कि, जरूरतमंद को मोरम दे रहे होंगे तो देने दो कहकर फोन काट दिया।
उक्त नायब साहब की कथनी व करनी में फर्क देख व सुन क्षेत्र के लोग यही कह रहे हैं कि, अनिल बघेल साहब का क्या 8 लेन वाले उनके बाप या रिश्तेदार लगते हैं...? जिसके कारण उन्हें मोरम बेचने की परमिशन अनाधिकृत रूप से दे दी और कोई गांव का व्यक्ति मकान बनाने के लिए मोरम ले जाता है तो साहब कार्रवाई कर अपनी अफसरगिरी झाड़ रहे है। साहब के बारे में यहां तक कहा जा रहा है कि, 8लेन वाले साहब का कोई रिश्तेदार नहीं है तो तय हे साहब सबसे बड़ा रिश्वतखोर है और रिश्व्त लेने के साथ बड़ों पर कोई कार्रवाई नहीं करता और छोटो पर कार्रवाई कर अपनी अफसरशाही रूपी मर्दानगी पेश कर रहा है।
अनिल बघेल की दोहरी कारस्तानी से कई तरह की चर्चा