घटना को लेकर ग्रामीणों ने रेलवे ट्रेक पर बैठ जताया विरोध, घण्टो बाधित रहा रेलवे ट्रेक
रेलवे को करोड़ो की लगी चपत, ओवर ब्रिज और पैदल पुल न होने के कारण लोग बन रहे काल का ग्रास
सत्तापक्षीय कोई जवाबदार नेता नही आया मौके पर, ब्रिज और खाद को लेकर सांसद डामोर ओर मध्यप्रदेश सरकार को जम कर कोसा
माही की गूंज, बामनिया/पेटलावद।
आज सुबह लगभग साढ़े 8 बजे रेलवे फाटक पर बड़ी दुर्घटना हो गई, जिसमे तीन लोगों ने अपनी जान गवा दी। मृतकों की गलती सिर्फ इतनी थी कि वे रेलवे फाटक पर खड़े होकर फाटक खुलने का इंतज़ार कर रहे थे। ट्राला क्रमांक आरजे 17 जीए 8187 अनियंत्रित होकर फाटक पर खड़े दुपहिया वाहनों को कुचलते हुए रेलवे फाटक तोड़ कर ट्रेक पर चला गया। गनीमत रही जिस और ट्राला दुर्घटनाग्रस्त हुआ उस और फाटक पर कम ही लोग थे, साथ ही जिस ट्रेक पर ट्राला जाकर रुका उस और से कोई ट्रेन नही आई वरना और भी बड़ा हादसा हो सकता था। दुर्घटना के बाद वाहन चालक मौके से फरार हो गया। फाटक पर पहुँचने से पहले भी ड्राइवर ट्राले का एक साइड ग्लास तोड़ कर ग्राम में विवाद करके ही रेलवे स्टेशन की और निकला था।
तीन लोगों की हुई मौत
ट्राले की चपेट में आने से दुपहिया वाहन सवार करवड़ निवासी भंडारी दम्पत्ति जो खवासा समाज के धार्मिक आयोजन में भाग लेने जा रहे थे, दुपहिया वाहन के पीछे बैठी महिला मनोरमा भंडारी की मौके पर दर्दनाक मौत हो गई, जबकि सुभाषचन्द्र भंडारी को गंभीर हालत में रेफर किया था लेकिन रास्ते मे ही दम तोड़ दिया। वही खाद की किल्लत से जूझ रहे किसान खाद के लिए खवासा जा रहे हैं, नगर के समीपस्त गांव रामपुरिया के किसान कालू डोडियार की भी मौके पर ही मौत हो गई।
आक्रोशित ग्रामीणों ने ट्रेक किया जाम, प्रशासन के आश्वासन के बाद हटे
दुर्घटना के बाद ग्रामीणों में भारी आक्रोश देखा गया और शव को रेलवे ट्रेक पर रख कर कड़ा विरोध करते हुए ब्रिज ओर उचित मुआवजे की मांग की। ग्रामीणों के विरोध के चलते रेल यातायात बुरी तरह बाधित हो गया। लगभग दो घण्टो की मशक्कत के बाद प्रशासन के आश्वासन के बाद मौके से ग्रामीणों को हटाकर शव परीक्षण के लिए भेजा गया।
घण्टो बाधित रहा रेल यातायात, रेलवे को करोड़ो की चपत
दुर्घटना के बाद रेल यातायात बुरी तरह प्रभावित हुवा। ट्राले के रेलवे ट्रेक पर आ जाने से दिल्ली-मुंम्बई रेल मार्ग बुरी तरह प्रभवित हुवा ओर इस लाइन से गुजरने वाली ट्रेनों का स्टॉपेज दूसरे स्टेशनों पर करना पड़ा। ग्रामीणों के उठने के बाद लगभग 4 से 5 घण्टे बाद एक ट्रेक शुरू हो पाया, जबकि दूसरे ट्रेक के लिए रेलवे को भारी मशक्कत करनी पड़ी। क्योकि ट्राला कोटा स्टोन पथर से भरा हुआ था जिसे हटाने के लिए दो क्रेन के साथ-साथ रेलवे की विशेष टीम को बुलाया गया था। लगभग 7 से 8 घन्टे के बाद ट्राले को हटाया जा सका। ट्राले की चपेट में आने से रेलवे क्रासिंग की एक ओर की फाटक भी टूट गई। बताया जा रहा है दुर्घटना से प्रभावित रेल मार्ग के कारण रेलवे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।
ओवर ब्रिज और पैदल पुल की मांग, कई लोग गवा चुके अपनी जान
बामनिया रेलवे फाटक पर पहले भी कई हादसे हो चुके हैं जिंसमे लोग अपनी जान गवा चुके हैं। यहां दुर्घटनाओं को देखते हुए ओवर ब्रिज और पैदल पुल की मांग वर्षो से की जा रही हैं। कई बार ब्रिज के लिए सर्वे भी हो चुका है लेकिन जवाबदार नेताओं की उदासीनता के चलते आज तक ब्रिज स्वीकृत नही हो पाया। रतलाम-झाबुआ स्टेट हाइवे है जो गुजरात और राजस्थान को सीधे जोड़ता है इस मार्ग पर वाहनों का दबाव बना रहता है। इस मार्ग पर दो ओवर ब्रिज बनाना थे जिसमे एक बामनिया ओर दूसरा सजेली फाटक पर बनना है। सेजली फाटक पर तो ओवर ब्रिज स्वीकृत हुआ लेकिन बामनिया का ओवर ब्रिज आज तक स्वीकृत नही हुआ। रेलवे क्रासिंग के लिए एक पैदल पुल की मांग वर्षो से लंबित है जिससे रेलवे क्रासिंग के दौरान आए दिन लोग ट्रेनों की चपेट में आकर अपनी जान गवा चुके हैं।
नही आया कोई सत्तापक्षीय जवाबदार नेता, सांसद डामोर के प्रति जताया विरोध
दुर्घटना के बाद मौके पर सैकड़ो लोगो की भीड़ जमा हो गई। आनन-फानन में एसडीएम अनिल कुमार राठौर, एसडीओपी सौनु डावर, थाना प्रभारी पेटलावद राजू बघेल, तहसीलदार जगदीश वर्मा मौके पर पहुँच गए थे। रेलवे प्रशासन के अधिकारी मौके पर पहुँच गए थे। मौके की गंभीरता को देखते हुए जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक ने भी मौके का जायजा लिया, लेकिन इस दौरान कोई भाजपा का नेता मौके पर नही पहुँचा।
उधर कई जनप्रतिनिधियों ने बताया कि, बार-बार रेलवे ओर मध्यप्रदेश सरकार को अवगत करवाने के बाद भी ओवर ब्रिज को लेकर कोई सूद आज तक नही ली गई। ग्रामीणों ने क्षेत्र के सांसद गुमानसिंह डामोर पर भी आरोप लगाए जिन्होंने अपने चार वर्ष के कार्यकाल में क्षेत्र की इस बड़ी मांग पर कोई ध्यान नही दिया।
भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं ने बताया कि, सांसद डामोर को समय-समय पर इस मामले में अवगत करवाते रहे हैं लेकिन ब्रिज की कहानी कहा तक पहुँची ये तो वो ही जाने।
हादसे से लेगे सबक या फिर से किसी हादसे का रहेगा इंतज़ार
आए दिन हो रहे हादसों के बाद शासन-प्रशासन, मुआवजे का मरहम लगा कर भूल जाती है और फिर से किसी बड़ी दुर्घटना का इंतज़ार करने में जुट जाता है। ऐसे हादसों से सबक लेने की आवश्यकता है और वर्षो से की जा रही ग्रामीणों की मांग की पूरा किया जाना चाहिए।