समूह लोन में मेडिक्लेम बीमा होने पर महिला को नहीं मिला स्वास्थ्य लाभ
माही की गूंज, बामनिया
कोरोना वायरस की रोकथाम की दिशा में सरकार द्वारा लगाए गए लाॅकडाउन के दौरान केन्द्र सरकार ने आम लोगों को बैंकों के ऋण आदि जमा करने में रियायत के निर्देश जारी किए थे। किन्तु महिला समूहों को लोन देने वाली माइक्रो फायनेंस कंपनिया ब्याज लगने की बात से भ्रमित कर किश्त भरने का दबाव बना रहे है। इन कम्पनी द्वारा समूह लोन के साथ ही जो बीमे किए जाते है, उसमें मेडिक्लेम बीमा भी सम्मिलित होता है किन्तु ग्राम अमरगढ की एक अस्वस्थ्य ग्रामीण महिला को उपचार होने तक बीमा राशि दिए जाने की बात कहते रहने वाली कम्पनी ने उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती हुई महिला को बाद में बीमा राशि देने से इंकार कर दिया और ग्रामीण महिला के परिजनों को येन-केन उपचार की बडी राशि की व्यवस्था कर महिला का उपचार करवाना पड़ा।
समीपस्थ ग्राम अमरगढ की महिला कंकूबाई भूरिया द्वारा क्षेत्र की स्वतंत्र माइक्रो फायनेंस कम्पनी के माध्यम से समूह लोन लिया था। जिसमें नियमानुसार होने वाले चार प्रकार के बीमों की राशि भी जमा की गई थी। जिसमें स्वंय तथा परिवार के सदस्य का अस्पताल में उपचार होने पर निर्धारित बीमा राशि कम्पनी की ओर से दी जाना थी, किन्तु कंकूबाई भूरिया का आकस्मिक रूप से स्वास्थ्य खराब होने पर पेटलावद के निजी अस्पताल में भर्ती किया गया जिस पर कम्पनी वालों ने उन्हें मेडिक्लेम बीमा राशि का लाभ पाने के लिए रतलाम के एक अस्पताल में उपचार करवाने का कहा। जहां पर कंकूबाई को भर्ती किए जाने के बाद माइक्रो फायनेंस कम्पनी ने किसी भी प्रकार की बीमा राशि का लाभ नहीं मिलेगा, ऐसा कह दिया। गरीब ग्रामीण महिला का परिजनों ने जैसे-तैसे राशि इकट्ठा कर स्वयं के खर्च से इलाज करवाया और अस्पताल से डिस्चार्च करवाकर घर लाए।
कम्पनियां करती है ग्रामीणों को भ्रमित
लोन देने का लालच देकर माइक्रो फायनेंस कम्पनियां ग्रामीण क्षेत्र के भोले-भाले लोगों को शुरूआत में कई तरह से भ्रमित करते है और लोन से मिलने वाली कई सुविधाएं और लाभ बढ-चढकर बताते है, किन्तु असल में ऐसा कुछ नहीं होता है। एक बार लोन लेने के बाद ग्रामीण इनके चंगुल में फंस जाता है और ये लोन राशि कई गुना अधिक राशि गरीब ग्रामीण परिवार से हासिल करने में कामयाब हो जाते है। कोरोना रोकथाम में लागू लाॅकडाउन के कारण सरकार द्वारा बैको और फायनेंस कम्पनियां आदि से अपने ग्राहकों से ईएमआई के लिए दवाब नहीं बनाने के निर्देश दिए गए थे। 30 जून तक की इस सुविधा को सरकार ने अब 30 सितम्बर तक के लिए बढा दिया गया है। किन्तु उसके बावजूद माइक्रो फायनेंस कम्पनियां समूह लोन की किश्त के लिए रूबरू एवं फोन के माध्यम से आम ग्रामीणों को भ्रमित कर किश्त भरने का दवाब बना रहे है। इनके द्वारा ग्रामीणों से कहा जा रहा है कि, सरकार ने किश्त भरने से मना नहीं किया है और तुम लोग नहीं भरोगें तो तुम्हें ज्यादा ब्याज भरना पडेगा। ऐसे कई प्रकार से भ्रमित कर येन-केन किश्त की राशि भरने का दवाब बनाते चले आ रहे है । लाॅकडाउन में अपने आय के सारे स्त्रोत बंद होने के कारण जैसे-तैसे अपने परिवार का गुजारा करने वाले गरीब ग्रामीणों पर माइक्रो फायनेंस कम्पनियां दबाव बनाकर मानसिक रूप से प्रताडित करने से बाज नहीं आ रही है । मामले में कृष्णआर्य, स्वतंत्र माइक्रो फायनेंस कम्पनी का कहना है कि, हमारे द्वारा किश्त भरने का दवाब नहीं बनाया जा रहा है। मेडिक्लेम बीमा अवधि पूरी हो जाने के कारण संबंधित महिला को नहीं मिल पाया है। वही क्षेत्र के विधायक वालसिंह मेड़ा ने कहा कि, हमारी सरकार थी तो हमने किसानो का एक लाख तक का कर्जा माफ किया शिवराजसिह भी इन महिलाओ का समुह का लोन माफ करे। अभी अब हमारी सरकार ही नही तो हम क्या कर सकते हैं।