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मामाजी की आस्था भारी पडती है या प्रशासन के लिए गाइडलाईन की चुनौती
Report By: गौरव भंडारी/राकेश गेहलोद 25, Dec 2020 4 years ago

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स्वतंत्रता सेनानी मामा बालेश्वर दयाल की 22 वी पुण्यतिथि पर कोई घोषित आधिकारिक कार्यक्रम नही

माही की गूंज, बामनिया

    स्वतंत्रता सेनानी मामा बालेश्वर दयाल की 22वी पुण्यतिथि 26 दिसम्बर शनिवार को मनाई जाएगी, बामनिया मामा जी के आश्रम व उनके समाधि स्थल पर होने वाले प्रतिवर्ष अनुसार आयोजन को इस बार कोरोना कोविड-19 संक्रमण के चलते अधिकृत रूप से बिना किसी बड़े आयोजन के मनाये जाने का निर्णय लिया गया है। आश्रम से जुड़े मामा जी के भक्तों और आयोजको ने भी अपनी और से मामाजी के अनुयायो से अपील की है कि, वो इस बार कोरोना संकट को देखते हुए घर से ही श्रद्धांजलि दे और समाधि स्थल पर नही आए, प्रशासन ने भी अपनी और से मामाजी के आश्रम और समाधि स्थल का दौरा कर पुण्यतिथि पर समाधि स्थल पर अधिक भीड़ नही उमड़े इसके लिए व्यवस्था का जायजा भी लिया है। 

कोरोना का डर भी नही रोक पाएगा, नेता नही भगवान की पदवी पर है मामाजी

    पूरे देश मे हजारों स्वतंत्रता सेनानी रहे है और उनकी पुण्यतिथि पर भी लोग उनको याद करते है लेकिन मामा बालेश्वर दयाल उनके अनुयायो के लिए केवल स्वतंत्रता सेनानी नही बल्कि भगवान की तरह पूजे जाते है, इसलिए उनकी हर पुण्यतिथि पर उनके भक्तों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ती ही जा रही है, जहां एक समय मामाजी के आश्रम पर आने वालों को खाना पीना तक नही नसीब होता था, आज वही पर दो दिन का मेला लगना शुरू हो गया है, भारी ठंड के बीच महिला, पुरुष, बुजुर्ग ओर बच्चे सभी लोग बड़ी संख्या में पैदल और वाहनों के माध्यम से यहां आकर मामाजी की समाधि पर माथा टेकते है और नारीयल, अगरबत्ती और पूजा सामग्रियों से पूजा-पाठ कर आशीर्वाद लेते है। मामाजी के भक्तों के लिए मामाजी उनके भगवान की तरह पूजनीय है, ऐसे में कोरोना काल की वर्तमान स्थिति को देखते हुए मामाजी के भक्तों को बिना सख्ती के रोक पाना सम्भव नही है।

राजस्थान के कुशलगढ़, डूंगरपुर और बांसवाड़ा से अधिक पहुंचते है लोग

    वैसे तो मामा बालेश्वर दयाल बामनिया में रहते थे, लेकिन उनका कर्म क्षेत्र जिले से लगे राजस्थान के सीमावर्ती बांसवाड़ा, डूंगरपुर, दाहोद, पंचमहल आदि जिलो में अति पिछड़ा आदिवासी समाज की सामाजिक बुराइयों को दूर करने का कार्य करते और उनकी शिक्षा को बढ़ावा देने का कार्य किया, मांस मंदिरा जैसी बुराइयों को दूर किया जिस कारण आज भी मामाजी पीढ़ी दर पीढ़ी आदिवासी समाज मे भगवान के रूप में पूजे जा रहे है। कुशलगढ़, बांसवाड़ा और डूंगरपुर क्षेत्र में कई विद्यालय आज भी मामा बालेश्वर दयाल के नाम पर है और कई जगहों पर उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई है।

राजनीति का केंद्र बिंदु बना समाधि स्थल 

    कुशलगढ़ क्षेत्र में जनता दल यूनाइटेड का वर्चस्व अच्छा-खासा मामाजी की वजह से बना हुआ था, मामाजी के निधन के बाद जेडीयू ने अपना नाम बनाए रखने के लिए बड़े राजनीतिक आयोजन शुरू में किए इसके बाद समाजवादी पार्टी ने भी मामाजी के नाम पर अपना वर्चस्व जमाने का प्रयास किया, तो जनता दल के कई धड़ो ने अपने-अपने नाम से मामाजी के नाम पर रोटियां सेकी।

आज भी उपेक्षित है मामाजी का आश्रम

    मामा बालेश्वर दयाल के अनुयायी निस्वार्थ भाव से यहां आते है, लेकिन उनके नाम को भुना कर अपना उल्लू सीधा करने वाले आज तक मामाजी के आश्रम को उतना नही सवार सके जितना कि, उनके नाम पर वादे किए गए, उसके उलट मध्यप्रदेश सरकार और स्थानीय प्रशासन और नेताओं ने भी मामाजी के भील आश्रम के विकास के लिए कोई प्लान या प्रोजेक्ट नही बनाया, सही मायनों में मामाजी और उनका आश्रम उपेक्षित है। स्थानीय विधायक, सांसद और जनप्रतिनिधि वर्ष में एक बार भी केवल दिखावे के लिए बमुश्किल यहां पहुंचते है। कोरोना संकट जैसी बड़ी त्रासदी के बीच पहला अवसर है कि, शासन की गाइडलाईन को चुनौती देकर आस्था भारी पड़ती है या प्रशासन ये देखना होगा।

समाधी पर जाने के लिए प्रशासन ने बनाया वैक्लपीक मार्ग


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