पुरानी टीम के साथ 2023-24 चुनाव में उतरना भानु को पड़ेगा भारी, पूर्व जिलाध्यक्ष की छवि, भाजपा का नुकसान तय
माही की गूंज, पेटलावद।
पिछले दिनों भाजपा ने संगठन में बदलाव करते हुए अपने एक ओर जिलाध्यक्ष को निर्धारित कम से कम तीन वर्ष का कार्यकाल पूरा करने से पहले हटा दिया गया। लगातार विवादों में घिरे रहे भाजपा के माड़साब लक्ष्मण नायक पर उनके कार्यकाल के दौरान योन शोषण सहित बलात्कार, सरकारी सप्लाई में भ्रष्टाचार ओर वसुली तक के गंभीर आरोप लगे, जिससे कई मौकों पर भाजपा को नीचा देखना पड़ा। कई बड़े नेताओं के आगमन पर उनके दौरे से अधिक माड़साब की शिकायतो को मीडिया कवरेज मिला, उनकी टीम के कई साथी उनके द्वारा फैलाये रायते में पूरी तरह से शामिल है, जो समय-समय पर मिडीया और विपक्ष के निशाने पर रहे हैं। आज हटे-कल हटे वाले लक्ष्मण माड़साब को आखिर रवानगी देकर भाजपा ने जिले की राजनीति में भानु भूरिया नाम का नया फेलवर दिया हैं, लेकिन टीम के नए कलेवर को लेकर अभी से असमंजस बना हुआ है।
विधानसभा और लोकसभा में पुरानी टीम के साथ उतरना पड़ सकता है भारी
पूर्व जिलाध्यक्ष नायक ने अपने खेमे में जिला और मण्डल स्तर तक ऐसे पासे फिट किये थे, जो भाजपा का काम कम और नायक का काम ज्यादा कर रहे थे। उनकी टीम के ज्यादातर पदाधिकारी घर बैठ कर फ़ोटो छाप नेतागिरी करते हुए दिखे। भाजपा ने आने वाले 2023 के विधानसभा ओर 2024 के लोकसभा जैसे बड़े चुनाव को देखते हुए जिम्मेदारी आदिवासी युवा नेतृत्व भानु को दी है। जिन्होंने अपने जिलाध्यक्ष बनते ही जिले की तीनों विधानसभा जितने का दावा किया, जो वर्तमान की टीम और संगठन के साथ टेडी खीर नजर आ रही।
जिलाकार्यकर्णी सहित मण्डल स्तर तक के कई पदाधिकारी ऐसे हैं, जिनका खुद का सामंजस्य नए जिलाध्यक्ष से नही है। युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष का तय होना हो या चुनाव में टिकिट वितरण आपसी विवाद खुलकर सामने आ चुका है। ऐसे में पुरानी टीम के साथ ही 2023 ओर 2024 की बड़ी चुनौती के लये उतरना भानु का उदय की जगह अस्त भी हो सकता है ।
संगठन में परिवर्तन के इंतजार में जमीनी कार्यकर्ता
जिले में भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओ की भानु की नई टीम का इंतजार है। जिनके साथ मिलकर जमीन स्तर पर काम करना चाहते हैं लेकिन वो तभी सभवः है जब नए कार्यकर्ताओ को मौका दिया जाये। क्योकि मण्डल स्तर पर स्थिति यही है की वो पुराने नेतृत्व में अभी तक कार्य करने को तैयार नही है। नायक के हटने के बाद जिस तरह की प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर आई है उससे साफ है भाजपा नेताओं में उत्साह का संचार हुआ है और इस उत्साह को बनाये रखने के लिए भानु को अपनी नई टीम को, नए कलेवर में मैदान में उतारना होगा।
चुनावों में मिला-जुला परिणाम, बूथ स्तर पर नही हो पाया कार्य, समर्पण निधि में भी कमजोर
पूर्व जिलाध्यक्ष नायक के कार्यकाल में ग्राम पंचायत और नगर पालिका, परिषद के चुनाव हुए भले ही अंतिम परिणाम भाजपा के पक्ष में आये। लेकिन आल-ओवर भाजपा का प्रर्दशन देखा जाए तो भाजपा को इन चुनावों में नुकसान उठाना पड़ा है। खुद के ग्रह क्षेत्र को जिला पंचायत में पूरी तरह से गवाने के कारण जिला पंचायत से भाजपा एक बार फिर दूर हो गई। तो ग्रह क्षेत्र की एक जनपद भी चली गई, बड़ी संख्या में भाजपा के बैनर वाले नेता हार कर बाहर हो गए, तो भाजपा समर्थित सरपंचों की संख्या में भी कमी आई। जयस जैसे संगठन की एंट्री में भी कही न कही जिलाध्यक्ष नायक का हाथ रहा, जिन्होंने समय-समय पर जयस को मिडीया कवरेज लेने का मौका दिया। कई जनपद में भाजपा बैठी जरूर लेकिन उसके पीछे जनपद अध्यक्ष बनने वाले का पूरा काम है। जिसने संगठन का इंतजार न करते हुए स्वयं के मैनेजमेंट पर ध्यान दिया। ऐसे ही कुछ परिणाम नगर पालिका ओर नगर परिषद में आये, जहा एक नगर पालिका ओर चार नगर परिषद में पहली बार अध्यक्ष पार्षदों द्वारा चुना जाना था। 5 स्थानों पर मिलकर लगभग 80 पार्षद भाजपा के निशान पर मैदान में उतरे थे, जिसमे से लगभग 45 के करीब ही पार्षद जीत दर्ज कर सके । अध्यक्ष अपने बिठाकर जीत के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीन स्तर पर नायक के नेतृत्व में भाजपा प्रर्दशन कमजोर रहा। नायक के नेतृत्व में मिली हार का बड़ा कारण बूथ स्तर तक काम करने वाली पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा का काम बूथ स्तर पर बाकी है। कई मंडलों में या तो काम नही हुआ है या फिर फर्जी काम कर खानापूर्ति की गई। भाजपा के पन्ना प्रमुख वाली नीति भी चुनाव में फेल रही। बात करे समपर्ण निधि की तो प्रदेश संगठन से मिले टारगेट के अनुसार पूर्व जिलाध्यक्ष समर्पण निधि जमा नही कर पाए।
प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य बनकर भानु के आगे रहने की कोशिश
संगठन के नियमो के अनुसार जिलाध्यक्ष को प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य बनाया जाता है, पूर्व के लगभग जिलाध्यक्ष प्रदेश कार्यकारणी सदस्य हैं। पूर्व जिलाध्यक्ष नायक को भी प्रदेश कार्यकारणी सदस्य बनाया गया है, जिसको प्रदेश के दिशानिर्देश में कार्य करना होता है। लेकिन नायक अभी तक खुद को जिलाध्यक्ष समझकर जिलकार्यकर्णी सदस्य के नाम पर नए जिलाध्यक्ष के आगे-आगे जा रहे हैं, जो भानु ओर भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकता है। क्योंकि कई मोर्चो पर बदनाम हो चुके पूर्व जिलाध्यक्ष नायक के साथ खड़े रहने को कार्यकर्ता असहज महसूस कर रहे हैं। खासकर महिला कार्यकर्ता और उनको साथ लाने वाले उनके रिश्तेदार जो नायक के रहते खुलकर महिलाओं को मैदान में नही उतार रहे। दूसरी ओर पुर्व जिलाध्यक्ष की मौजूदगी के कारण विपक्ष लगातार भाजपा पर हमलावर होता है। विधानसभा 2023 को देखते हुए नए जिलाध्यक्ष को पूरा मैनेजमेंट अपने हाथ मे रखना होगा, तब कही जाकर भाजपा की वापसी के द्वार खुल सकते हैं।