गुटबाजी और छीटाकषी के अंगारो पर चलकर भविष्य संवारने की है चुनौती
माही की गूंज, झाबुआ।
कोई ढाई साल बाद अंततः भारतीय जनता पार्टी ने जिले को नया अध्यक्ष दे ही दिया। सार्वजनिक मंचो से लगातार कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों के विरोध, विवादास्पद छवि के बावजूद शीर्ष भाजपा ने जिलाध्यक्ष के रूप में लक्ष्मणसिंह नायक को थोप रखा था। जिले के एकाधिक महिलाओं द्वारा चरित्रहीनता, अष्लीलता के आरोप, भाजपा में बढ़ती गुटबाजी, कार्यकर्ताओं ही नही अपितु पदाधिकारियों की नाराजगी के बावजूद नायक के जिलाध्यक्ष बने रहने पर राजनीतिक के ज्ञाता तरह-तरह के कारण बता रहे है। कोई कह रहा था कि, चरित्रहीन नायक को भाजपा के मातृ संगठन का सहारा, तो कोई पार्टी शीर्ष स्तर के खिलाफ होने का कारण बता रहा था। खैर शाम, दाम, दंड, भेद के बावजूद नायक, कार्यकाल के 6 माह पहले ही रवाना कर दिये गए और जिले के कमान आदिवासी युवा नेता भानु भूरिया के हाथो में सौंप दी।
उपचुनाव हारकर बहुत कुछ जीत लिया भानु ने
एक साधारण से कार्यकर्ता के रूप में भानु की सक्रीयता, पार्टी के पक्ष में लगातार कार्य का परिणाम भानु भूरिया को युवा मोर्चा जिलाध्यक्ष के रूप में मिला था। भानु के लिये भाजयुमो जिलाध्यक्ष का पद पार्टी में उनके बढ़े कद की नींव साबित हुआ और भानु लगातार सक्रीयता, पार्टी द्वारा दिये गये कर्त्तव्यों का निर्वहन करते हुए राजनीति में मिली नई उंचाईयों को छुते रहे।
झाबुआ विधानसभा क्षेत्र के भाजपाई विधायक सांसद चुनाव में निर्वाचित होने के पष्चात रिक्त हुई झाबुआ विधानसभा सीट पर पार्टी चिन्ह से चुनाव लड़ने हेतु विकल्प और भी थे, किंतु पार्टी ने भानु पर भरोसा जताया। चूंकि सत्ता में कांग्रेस विराजित थी, इसीलिये विपरित परिस्थितियों में भाजपा के शीर्ष स्तरीय नेताओं ने भी उपचुनाव में भानु के लिये चुनावी कमान थाम रखी थी। चुनाव परिणाम भानु के पक्ष में तो नही आए, किंतु भानु का स्थानीय कुछेक नेताओं के माध्यम से मंत्री मण्डल ही नही अपितु संगठन के भी प्रदेष स्तरीय नेताओं से जीवंत संपर्क बन गया। लगातार संवाद का ही कारण रहा कि, भानु जिले से लेकर भोपाल तक एक जाना-माना चेहरा बन गया। अनुसूचित जनजाति को लगातार लाभांवित करने हेतु प्रयासरत मुख्यमंत्री स्वयं भानु से सीधे संवादित होने लगे तो अंचल के लिये एक-दो सौगाते भी भानु के प्रयास से ही धरातल पर उतरी। लगातार सक्रीयता, गुटबाजी से परे रहकर कार्यकर्ताओं ही नही अपितु जमीनी स्तर पर मतदाताओं की हर संभव मदद, युवाओं की बड़ी टीम, प्रदेष स्तरीय नेताओं से लगातार संवाद आदि ही जिलाध्यक्ष पद पर भानु की ताजपोषी का मुख्य कारण रहे।
सवर्ण वर्ग में मायूसी
आदिवासी युवा के जिलाध्यक्ष बनते ही सवर्णो में नाराजगी नही पर मायूसी छाई हुई है। अनुसूचित क्षेत्र होने से पंचायत से लेकर पालिर्यामेंट तक के होने वाले निर्वाचनों में आरक्षण के अनुसार अधिकांष अनुसूचित जाति के लोगो की ही बाध्यता होती है। सवर्ण समाज के लिये कुछेक प्रतिनिधित्व अनारक्षित रहता भी है किंतु बड़े निवार्चन में अंचल के सवर्णो को कोई खास स्थान प्राप्त होना नामुमकीन सा है। ऐसे में पार्टी से जुड़े सवर्ण, संगठन में उंचे पद को लालयित रहते है। जिलाध्यक्ष पद को लेकर हर बार सवर्णो को यही मंषा रहती कि, पार्टी किसी भी सवर्ण को उक्त पद से नवाजे। किंतु कई बार परिस्थितियों के अनुरूप आदिवासी जिलाध्यक्षों ने पार्टी की कमान संभाली और भानु भी उनमें से ही एक है। आदिवासी जिलाध्यक्ष बनने से सवर्ण समाज में एक बार पुनः मायूसी सी छाई हुई है।
भानु उदय हुआ या होगा अस्त...?
जिले में भाजपाई जिलाध्यक्ष एक ऐसा संगठनात्मक पद है, जो गुटबाजी को लेकर हमेषा से विवादापस्द रहा है। कई जिलाध्यक्षों पर गुटबाजी के आरोप ने उनका कार्यकाल खराब किया गया है, तो कई जिलाध्यक्षों की तानाषाही ने भी उनके राजनैतिक जीवन का हृस किया है। इसके अतिरिक्त कई बार ऐसे मामले में भी सामने आए है, जिनमें महिलाओं का सहारा लेकर जिलाध्यक्षो के विरूद्ध षडयंत्र रचा गया अथवा पूरानी किए को वर्तमान में उजागर कर जिलाध्यक्ष की बली ले ली गई। जिलाध्यक्ष पद के लिये दावेदारों की हमेषा से भाजपा में भरमार रही है। इसीलिये पार्टी जिलाध्यक्ष कोई भी हो, एक से अधिक लोगो की आंखो में खटकता ही है। भाजपाई इतिहास को देखे तो पार्टी में जितने भी जिलाध्यक्ष रहे उनकी राजनीति का हृस ही हुआ है। कार्यकाल पूर्ण करने के बावजूद जिलाध्यक्ष रहे भाजपाई राजनीति में लगातार डूबते ही रहे और सहारा देने वाला कोई नही मिला। हालांकि पूर्व जिलाध्यक्षों में एकाध की सक्रीयता बनी रही किंतु उम्मीद अनुसार राजनैतिक कद बढ़ नही पाया। पूर्व जिलाध्यक्ष जिनमें शैलेष दुबे, निर्मला भूरिया, सुरेन्द्रसिंह मोटापाला, मनोहर सेठिया, दौलत भावसार, ओम प्रकाष शर्मा जैसे कई नाम है जो जिलाध्यक्ष रहने के बावजूद अपना राजनैतिक कद बड़ा नही कर पाए। विवादास्पद रहे लक्ष्मणसिंह नायक की स्थिति भी कुछ ऐसी ही होने वाली है। भानु भूरिया आने वाले विधानसभा चुनाव के लिये टिकिट हेतु सबसे भारी दावेदार माने जा रहे थे। किंतु अचानक जिलाध्यक्ष की ताजपोषी से हर कोई भानु उदय या अस्त के कयास लगा रहा है। वैसे भाजपाई इतिहास में जिलाध्यक्ष रहते विधानसभा की टिकिट पाने वाली एक मात्र नेता निर्मला भूरिया रही है और विधानसभा चुनाव में पराजित होने के बावजूद जिलाध्यक्ष की ताजपोषी का इतिहास भी भाजपा में रहा है। यही कारण है कि, भानु के विधानसभा चुनाव लड़ने पर पूर्ण विराम नही लगा है। खैर यह तो चुनाव के समय पार्टी तय करेगी किंतु पूर्व जिलाध्यक्षों की तरह जिलाध्यक्ष पद जाने के बाद स्वयं के राजनैतिक भविष्य की चिन्ता भानु को प्रारंभ कर देना चाहिये।
माडसाब आ गए पेंट-शर्ट में नई प्लेट लगवाकर
माडसाब से प्रदेष संगठन ने पद छीनकर प्रदेष कार्यसमिति सदस्य का लॉलीपाप थमा दिया है। हालांकि इससे पहले प्रदेष स्तरीय भाजपा, जिले के कई नेताओं को यह लॉलीपाप देकर ठंडा कर चुकी है। भानु के नए जिलाध्यक्ष की घोषणा होते ही गत दिनों जिलेभर में नये जिलाध्यक्ष के स्वागत कार्यक्रम में माडसाब भी पहुंच गए। इस बार माडसाब के वाहन की प्लेट बदल चुकी थी तो कुर्ता-पजामा ने भी पेंट-शर्ट का रूप धारण कर लिया था। कटाक्ष करने वाले भी कहा मानने वाले थे, नाड़ा ढीला हो जाता था पार्टी ने हुक दे दिया अब आसानी से नही खुलेगा आषय का चटकारे लेने लगे। हालांकि माडसाब की डोफाई इस कार्यक्रम में भी कम नही हो रही थी। जगह-जगह कार्यकर्ताओं को टरकाते फिर रहे थे और थांदला में एक पूराने भाजपाई नेता से पाला पड़ गया। नेता जो फिलहाल शायद माडसाब द्वारा थोपा गया निष्कासन झेल रहा था और कई बार सार्वजनिक मंच से माडसाब के किये कराए को भी उजागर करता आया था। पद जाने के बाद माडसाब का एक मिनट भी मान नही रख पाया और माडसाब पर चढ़त कर नई नवेली हैषियत याद दिला दी। हालांकि उपस्थित पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने मध्यस्थता कर मामला शांत किया अन्यथा माडसाब की होली-दीवाली साथ में ही मन जाती। माडसाब की रवानगी की खबर सुनते ही भाजपाईयों ने सोषल मीडिया पर भी जमकर मजे लिये। भाजपाईयां में चर्चा तो यह भी है कि, माडसाब जितनी जल्दी खुद को वरिष्ठ मानकर बैठ जाए उतना ही अच्छा है, अन्यथा जिले में ऐसे भाजपाईयों की कमी नही है जो डोफाई करने वाले को दिन में तारे दिखा दे।