माही की गूंज, बनी।
जब-जब भी धरती पर आसुरी शक्ति हावी हुईं, परमात्मा ने धर्म की रक्षा के लिए अवतार लेकर पृथ्वी पर धर्म की स्थापना की। मथुरा में राजा कंस के अत्याचारों से व्यथित होकर धरती की करुण पुकार सुनकर नारायण ने कृष्ण रुप में देवकी के अष्टम पुत्र के रूप में जन्म लिया और धर्म और प्रजा की रक्षा कर कंस का अंत किया। यह उद्गार श्रीहरिहर आश्रम बनी में चल रही सात दिवसीय श्रीमद् भागवत कथा के चौथे दिन भगवान श्रीकृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाते हुए आचार्य डॉ. देवेन्द्र जी शास्त्री ने श्रद्धालुओं के बीच कही।
भागवत के विभिन्न प्रसंगों का वर्णन करते हुए चौथे दिवस आचार्य श्री ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म की कथा का वर्णन किया। इसके पूर्व आचार्य श्री ने कहा कि, जीवन में भागवत कथा सुनने का सौभाग्य मिलना बड़ा दुर्लभ है। जब भी हमें यह सुअवसर मिले, इसका सदुपयोग करना चाहिए। कथा सुनते हुए उसी के अनुसार कार्य करें। कथा का सुनना तभी सार्थक होगा। जब उसके बताए हुए मार्ग पर चलकर परमार्थ का काम करें।
आचार्य ने स्वच्छता का दिया संदेश
दुनिया विचारों से बनती है। जैसे विचार वाले लोग होंगे, वैसा ही समाज और राष्ट्र का निर्माण होगा। इंसान विचारों का पुतला है। घर बनाने, मोटर खरीदने का मन में पहले विचार आता है और उसके बाद उक्त सोच को धरातल पर उतारने की कोशिश शुरू होती है। विचार से सृष्टि का निर्माण होता है। हमें ऐसे संसार का निर्माण करना है, जहां लोग संयम से रहे। गंदगी, बीमारी का नामोनिशान हो। हर कोई स्वच्छ और निरोग रहें। विचार शुद्ध होंगे तभी स्वास्थ्य समाज का निर्माण संभव है। विचारों को शुद्ध करने का काम इस ज्ञान यज्ञ में होता है। भागवत कथा का मुख्य उद्देश्य अच्छे विचार का निर्माण करना है। जिंदगी की सांसें बहुत कीमती है। जितनी सांसें हम छोड़ चुके है, उसे वापस नहीं ला सकते। हम अपने विचार, आचरण, भाव और चरित्र के शुद्धिकरण में लगना सांसों के लिए सार्थक होगा।
मंदिर को दुकान नहीं बनाएं
आचार्य श्री ने कहा कि, जो भी करें पूरे भाव और आनंद से करें। कथा का श्रवण करने आए हैं तो ध्यान और मन कथा में ही लगाए। जीवन में आनंद का होना जरूरी है। नीरस है तो आपके जीवन में कोई आनंद नहीं है। आप से मिलने वाले को भी आनंद की अनुभूति नहीं होने वाली है। भागवत में कहा गया है कि हर काम को पूरे आनंद से करें। काम कोई भी हो उसमें आनंद का होना जरूरी है। हर काम को यज्ञ मान कर करें, तभी उसमें आनंद का अनुभव होगा। दुकान चलाते हैं तो उसी में आनंद की तलाश करें। ग्राहक को भगवान मान कर उसकी पूजा करें। दुकान को मंदिर नहीं बना लें। इसी तरह अगर परमात्मा की शरण में जाते हैं तो उसी में रम जाए। मंदिर को दुकान बनने दे। मंदिर को दुकान बना दिया तो वहां जाने का आनंद समाप्त हो जाएगा।
सफाई करना मां भारती की सेवा करना समान
गंदगी देश के लिए एक कलंक है। इसे दूर करना है। भारत को स्वच्छ रखना मां भारती की सेवा है। स्वच्छ भारत मिशन एक जागृति है। पांच वर्ष तक अभियान चला, तो हमें साफ रहने की आदत बन जाएगी। देश स्वच्छ रहेगा, तो समाज स्वच्छ होगा और हम निरोग रहेंगे। यज्ञ मानकर अगर इस काम को करें, तो कलंक मिट सकता है।
कथा के दौरान रविवार को भी आचार्य श्री ने हरे रामा, हरे कृष्णा और राधे-राधे की गूंज से पूरे पंडाल को गोकुल धाम में तब्दील कर दिया। भजनों ने ऐसी समा बांधी की भक्त झूमने को विवश हो गए। सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु घंटों भक्ति के रंग में सराबोर रहे। कथा के आरम्भ से पूर्व व्यास पीठ पूजन सुनील बसेर, यजमान रमेशचन्द्र भटेवरा, विपिन भटेवरा, आदि ने किया।
भागवत कथा का रसपान करने के लिए पेटलावद विधायक वालसिंह मैंड़ा, ठा. हनुमंत सिंह डाबड़ी, मोहन टंडावी रायपुरिया, पूर्व विधायक सुश्री निर्मला भूरिया आदि पहुंचे थे।