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उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है...
06, Aug 2022 1 year ago

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श्रीमद्‌भागवत कथा का तीसरा दिन सम्पन्न

माही की गूंज, बनी।

        श्री हरिहर आश्रम में भटेवरा परिवार द्वारा आयोजित श्रीमद्‌भागवत कथा का तीसरा दिन सम्पन्न हुआ। भागवत भूषण आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री ने शनिवार को पेटलावद सहित समूचे अंचल से कथा श्रवण हेतु आये श्रद्धालुओं को धर्म का मर्म समझाया और आलस्य त्यागने पर जोर दिया। उठ जाग मुसाफिर भोर भई अब रैन कहां जो सोवत है...। इस भजन के जरिए लोगों को आलस्य प्रमोद से बचने की सलाह दी। कहा कि आलस्य जिन्दा आदमी की कब्र है और प्रमाद मृत्यु। ये दोनों मनुष्य के शत्रु हैं। प्रमाद में लोग अपने उद्देश्य भूल जाते हैं। लक्ष्य की प्राप्ति में शिथिलता ही आलस्य है।

        इससे पहले व्यास पूजन हुआ। इस दाैरान पेटलावद जनपद के नवनिर्वाचित अध्यक्ष रमेश भाई सोलंकी, कालूसिंह मचार, सुरेश पाटीदार, हेमेन्द्र सिंह राठौर, विकास पंवार आदि ने आचार्य श्री के प्रति श्रद्धा निवेदित की।

धर्म दूसर सत्य समाना...

        आचार्य श्री ने कहा कि, धर्म दूसर सत्य समाना....। यानी सत्य का पालन ही धर्म है। लाख पूजा करो, पर उसमें सत्य नहीं तो कोई फायदा नहीं। कई लोग इतने धार्मिक होते हैं कि प्याज-लहसुन तक नहीं खाते, पर घूस खाते हैं। गलत काम कर माल बनाते हैं। इस तरह के धार्मिक लोगों को कभी शांति नहीं मिल सकती है। कैसे आएगी शांति। जब तक जीवन में शुद्धि नहीं, शांति नहीं सकती। लोग पहले भी दुखी थे जब झोपड़ियाें में रहते थे। आज भी दुखी हैं, जब एसी कमरों में रहते हैं।

तोरा मन दर्पण कहलाए...

         दर्पण कभी झूठ नहीं बोलता है। जब कोई तुम्हारी निंदा या बड़ाई करे, तो दर्पण जरूर देखें। दर्पण है जीवन का दर्शन कराने वाला। दृष्टि सद् गुरु देता है और यह सत्संग से मिलती है। सद् गुरु की सेवा करनी चाहिए। सेवा का मतलब है उसके बताए मार्ग पर चलना। वैसा आचरण होगा, तभी मन-मुकुर साफ होगा। इसके लिए जरूरत है मन के दर्पण को साफ स्वच्छ रखने की। धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे। वे मोह के प्रतीक थे और गांधारी ममता का।

जो आनंद सिंधु सुख राशि...

        जोआनंद सिंधु सुख राशि...। यानी जो आनंद का सिंधु है। सुख का खजाना है। परमात्मा ऐसे कृपा सिंधु हैं कि उनकी थोड़ी सी कृपा से त्रिलोक सुखी हो जाता है। आचार्यश्री ने भगवान राम के साथ सूर्पणखा शबरी का उदाहरण देते हुए राग और अनुराग में अंतर समझाया। कहा कि राग हमेशा अपने स्वार्थ सुख की चिंता करता है, जबकि अनुराग तत्सुख का चिंतन करता है। राग अपने स्वार्थ को साधने के लिए दिखावा करता है, नाटक करता है। सूर्पणखा राम की सुंदरता पर मोहित थी। जबकि सबरी रामचंद्र जी को इसलिए जूठे बेर खिला रही थी कि प्रभु को खट्‌टे बेर नहीं मिले।

         धर्म का संबंध करूणा से है। कट्‌टरता से धर्म का संबंध नहीं है। धर्म का संबंध सत्य से है, संख्या से नहीं। जिस दिन धर्म में कट्‌टरता जाए धर्म समाप्त होने लगता है। धर्मांतरण जैसा कोई अधार्मिक कार्य हो ही नहीं सकता है। गलत है हिन्दू को ईसाई बनाना या मुसलमान बनाना या मुसलमान को हिन्दू बनाना। धर्म का उपयोग व्यक्ति को सिख, ईसाई, हिन्दू या मुसलमान बनाने का नहीं है। जो जिस धर्म को मानते हैं, उसी के जरिए अच्छा सच्चा इंसान बनाना ही धर्म का सही उपयोग है। धर्म को समझने में गलती करेंगे, तो जो समाधान है वह समस्या बन जाएगी। भागवत का कार्य है विवेक को जागरूक करना।

         आचार्य डॉ. देवेन्द्र शास्त्री ने कहा कि, जीवन में सही मार्गदर्शन के लिए सद्गुरु सत्संग की आवश्यकता है। असत्य का त्याग ही सत्संग है। भागवत कथा सिर्फ एक बार सुनने की चीज नहीं है, यह रेगुलर सुनने की चीज है। जिस तरह दवा रेगुलर यूज करने से फायदा पहुंचाती है, उसी तरह कथा भी जीवन को संवारती है। जिसमें रुचि होती है, लोग पहले वही करते हैं। यही कारण है कि लोग कथा छोड़ क्रिकेट देखने लगते हैं।



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