माही की गूंज, थांदला।
तपस्या प्रधान जैन धर्म में वर्षीतप को प्रथम तप के रूप में प्रधानता दी जाती है। आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेवजी से जुड़ा होने से इसकी प्राचीनता भी सदियों पुरानी है। जैन समाज में आज भी अनेक श्रावक श्राविकाओं का बड़ा वर्ग न केवल तप से अपितु ज्ञान, दर्शन व चारित्र आदि विभिन्न प्रकार से भी वर्षीतप की आराधना करने लगा है। इन्ही में सबसे कठिन है प्रचलित एकान्तर उपवास से वर्षीतप की आराधना जो लगातार 13 माह (400 दिन) तक निरन्तर एक दिन छोड़कर केवल गर्म अथवा राख युक्त धोवन पानी के दम पर निराहार रह कर की जाती है। श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन समाज के श्री ललित जैन नवयुवक मंडल के अध्यक्ष युवा तरुणाई तपस्वी रवि लोढ़ा ने वर्ष 2021 में अक्षय तृतीया से अपने वर्षीतप की आराधना प्रारम्भ की थी जो आज पूर्ण हो गई। 400 दिन तक एकान्तर निराहार उपवास की आराधना का पारणा महोत्सव लोढ़ा परिवार द्वारा निजी स्थान पर मनाया गया जिसमें थांदला श्रीसंघ, ललित जैन नवयुवक मंडल, आईजा परिवार, दिगम्बर समाज, तेरापंथ समाज, श्वेतांबर मूर्तिपूजक समाज, वागरेचा परिवार, गादिया परिवार, व्होरा परिवार, नागर समाज, कोठारी परिवार, अरोड़ा परिवार व जय जिनेन्द्र ग्रुप आदि के इष्ट मित्र परिजनों ने उनका अभिनन्दन कर पारणा कराया।
उल्लेखनीय है कि, रवि लोढ़ा ने इसके पूर्व भी मासक्षमण की दीर्घ तपस्या करते हुए आचार्य के गुण को समर्पित 36 उपवास किये वही करीब 11 बार अट्ठाई तप भी कर चुके है।