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सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बैकफुट पर सरकार
14, May 2022 1 year ago

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पंचायत आरक्षणः न उगल सकते न निगल सकते वाली स्थिति में सरकार

माही की गूंज, संजय भटेवरा

     झाबुआ। सुप्रीम कोर्ट के सख्त फैसले के बाद पंचायत चुनाव को लेकर स्थिति स्पष्ट हो गई है और गेंद अब सरकार के पाले में है। क्योंकि राज्य निर्वाचन आयोग भी कह चुका है कि, उनकी चुनावी तैयारी पूरी है अब सरकार को फैसला लेना है कि, वह कब चुनाव करवाना चाहती है। वर्तमान में सरकार की स्थिति दुविधा पूर्ण है। उसे डर है की अगर बगैर आरक्षण के चुनाव करवाए जाते हैं, तो उन्हें ओबीसी वर्ग की नाराजगी का सामना करना पड़ सकता है। चुनावों में देरी की जाती है, तो कोर्ट के फैसले की अवमानना हो सकती है। बरहाल सरकार ने पूर्व याचिका दाखिल करने की बात कह कर मामले को फिर से लटकाने के संकेत अवश्य दिए है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुर्नयाचिका दाखिल करना आसान काम नहीं है और सरकार का कहना है कि, वह इस पर विशेषज्ञो की राय ले रही है। अब आगे क्या होना है यह तो सरकार को तय करना है लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद चुनावी समर में उतरने वाले युवा नेताओं के चेहरे पर चमक अवश्य ला दी है ।

क्या जल्द होंगे चुनाव....?  

        सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तो यही लगता है कि, चुनाव जल्दी हो जाएंगे लेकिन मामला काफी कुछ सरकार के अगले कदम पर निर्भर करता है। चुनाव आयोग भले ही स्वतंत्र इकाई है, लेकिन सभी जानते हैं कि चुनाव कब कराया जाना है यह सरकार तय करती है। सरकार क्या फैसला लेने वाली है इसका पता अगले एक-दो दिन में लग ही जाएगा। सरकार को भी लग रहा है कि, जितना ज्यादा चुनाव लंबा खींचा जाएगा, उतना ही नुकसान भाजपा को होता दिखाई दे रहा है। इसलिए सरकार भी चाहेगी कि, अब इस मामले को लंबा न खिंचा जाए लेकिन वह ओबीसी वर्ग को भी नाराज नहीं करना चाहती है। इसलिए कुछ बीच के रास्ते की तलाश की जा रही है अब वह बीच का रास्ता क्या होगा....? जल्द ही पता चल जाएगा।

 कांग्रेस का क्या रुख रहेगा...? 

         पूरे मामले को लेकर कांग्रेस वेट एंड वॉच की स्थिति में है, उसे लग रहा है कि, दूध का बर्तन उसके पक्ष में ही गिरने वाला है। मोके की प्रतीक्षा में कांग्रेस दोनों ही स्थिति में सरकार को घेरने की तैयारी में है। अगर चुनाव होते हैं तो वह ओबीसी आरक्षण का मुद्दा बनाकर माहौल अपने पक्ष में लाने की कोशिश कर सकती है। वही टाले जाने पर संवैधानिक संकट और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना जैसा मुद्दा उठा सकती है। 

         वहीं सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी आरक्षण को लेकर सरकार की ओेर से रखे गए कमजोर तथ्य सरकार की तैयारी में कमी, अफसरशाही की निरंकुशता का प्रमुख मुद्दा उठा सकती है। वहीं मुख्यमंत्री को घोषणा वीर मुख्यमंत्री भी कहती आई है और इस फैसले के बाद कांग्रेस फिर यह कह सकती है, मामाजी केवल घोषणावीर मुख्यमंत्री है, उनके राज में मंत्री नहीं अफसरों की चलती है। मुख्यमंत्री चाहे कुछ भी घोषणा कर दे, होना वही है जो अफ़सर चाहते हैं। वहीं सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, राजनीतिक दल अगर वास्तव में ओबीसी आरक्षण चाहते हैं तो वे सामान्य सीटों पर ओबीसी वर्ग को टिकट दे सकते हैं। बहरहाल कानूनी दावपेंच, राजनीतिक जोड़-घटाव, वोट बैंक का नफा-नुकसान सब बातो से परे आम जनता यही चाहती है कि, जल्द से जल्द चुनाव हो। आम जनता का कहना है कि, सरकार को अपने काम पर भरोसा है तो वह चुनाव से डर क्यों रही है। अगर आपने अच्छा काम किया है और जनता का विश्वास हासिल है तो फिर डर कैसा.....?  जनता का विश्वास वोट में अवश्य बदलेगां। पंचायतों और नगरीय निकायों में भी चुनाव करवाना न केवल संवैधानिक बल्कि आम जनता का भी अधिकार है और सरकार को चाहिए कि, वे जनता का अधिकार जनता को सौंपे। 

         बहरहाल भाजपा व काग्रेस बयान बाजी कर अपने कमीज को सबसे ज्यादा सफेद बताने का प्रयास कर रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना विदेशी दौरा रद कर दिया है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बीडी शर्मा ने ओबीसी वर्ग को चुनाव होने पर 27 फिसदी से अधिक टिकट दी जायेगी, तो कमलनाथ ने भी ओबीसी वर्ग को काग्रेस में 27 फिसदी टिकट देने की बात कही है। चुनाव आयोग ने बुधवार को जुन माह के अंतिम दिनो तक नगर निकाय व त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव करवा दिये जायेगे कहा है। चुनाव आयोग सुप्रिमकोर्ट के निर्देश के बाद अपनी कसोटी पर खरा उतरने का पुरा प्रयास में जुट गया है। वही प्रदेश की राजनिती मे भी गरमाहट तेज गर्मी के साथ शुरू हो गई है।



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