क्या धारा 41 को गली बना लेंगे सप्लायर और उनके संरक्षक नेता, जानिए क्या है धारा 41 में
माही की गूंज, झाबुआ।
इन दिनों जिले में खेल सामग्री में भ्रष्टाचार का मामला जिले में जोर-शोर से चल रहा है। प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान के हस्तक्षेप के बाद जिला कलेक्टर ने जी जान लगा कर घटिया खेल सामग्री सप्लाई करने वालो पर थांदला और पेटलावद थाने में मामला दर्ज किया गया था, जिसके बाद से सभी पांच फर्मों के पोप्राइटर गायब है। इन फर्मों के पीछे सत्ताधारियों का हाथ है जिनके दम पर खेल सामग्री सप्लायई का खेल खेलने की तैयारी थी। वही सत्ताधारी नेता अब अपने राजनीतिक दबाव और पैसे के दम पर इन सप्लायरों को जेल जाने से बचाने की जुगत में लगे है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सप्लायरों के सत्ताधारी आका कानून प्रावधान के जरिए गली निकाल कर सप्लायरों को जेल जाने से बचाने की फिराक में है। इस मामले में अब धारा 41 के उपयोग ने जोर पकड़ लिया है कि सत्ताधारी नेता पुलिस पर आरोपियों को गिरफ्तार कर सीधे न्यायालय पेश नही कर धारा 41 में आरोपीयो को नोटिस जारी कर थाने पर बुलाकर वही से जमानत करवाने का दबाब बना रहे हैं। साथ ही इसके लिए पुलिस की अच्छी खासी भेंट पूजा भी की जाएगी। जानकारी ये भी मिल रही है कि किसी अधिकारी ओर जिम्मेदार ने इसमें समय रहते हस्तक्षेप नही किया तो ये गणित फिट भी हो जायेगा। मामला दर्ज करवाने वाले जिला कलेक्टर तक को इस मामले में अनभिज्ञ रखा जाएगा।
धारा 41 के क्या है प्रावधान...?
धारा 41 के दंड सहिता के प्रावधान के अन्तर्गत माननीय उच्च न्यायालय के द्वारा अवनेश कुमार विरुद्ध बिहार राज्य वाले प्रकरण में एक दिशा निर्देश जारी किया गया। जिसमे सात वर्ष की सज़ा वाले प्रावधान की धाराओं के तहत दंडनीय अपराधों में पुलिस को गिरफ्तारी का अधिकार नही दिया गया है। किंतु 4 से 5 कारण ऐसे हैं जिसमे पुलिस सात वर्ष से कम की सजा वाले प्रकरण में पुलिस गिरफ्तार कर सकती हैं। जिसमें मुख्य कारणों में आरोपी द्वारा अपराध का दोहराव किये जाने की आशंका हो, आरोपी के भागने व फरार होने की संभावना होती है, आरोपी शाक्ष को प्रभावित कर सकता है, आरोपी से संपत्ति, माल और दस्तावेज शेष रही है जिसके कारण आरोपी की गिरफ्तारी पुलिस कर सकती हैं। लेकिन इन मामलो जो गम्भीर धाराएं लगी हुई है, पुलिस ऐसे मामलों में गिरफ्तारी करती है लेकिन आरोपियों को फायदा पहुचाने के लिए पुलिस आरोपियों से मिल कर इस प्रकार के प्रकरण में धारा 41 का उपयोग करते हैं। खास कर ऐसे कई मामले सामने आते हैं जिसमे राजनीतिक प्रभाव के चलते आरोपियों को रियायत दी जाती है। चुकी मामला प्रशासन की और दर्ज कराया हो कर शासकीय लेन-देन से जुड़ा है केवल राजनीति प्रभाव और साठ-गांठ से ही ये सभव है। इससे पहले मध्यान भोजन घोटाले में भी इन धाराओ में मामला दर्ज हुआ था और लगभग 150 से अधिक आरोपियों की गिरफ्तारी की गई जिसमें ज्यादातर अनपढ़ ग्रामीण महिलाएं थी इसके बाद भी एक-एक आरोपी की गिरफ्तारी की गई।
ऐसे में खेल सामग्री भ्रष्टाचार में अगर आरोपियों को धारा 41 का लाभ मिलता है तो कही न कही मामले में आरोपियों को बचाने के लिए राजनीतिक रसूख का उपयोग और लेन-देन होने की चर्चा जोर पकड़ लेगी। जिसमे सीधी बदनामी जिला प्रशासन की होगी।
बिना सेटिंग और दबाव के सम्भव नही
कानून की जानकारी नही होने से पुलिस मामूली मामलो में भी गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर देती है। कानूनी प्रावधान होने के बाद छोटे-मोटे अपराध में किसी प्रकार की रियायत नही दी जाती। लेकिन बड़े और कानून के जानकार अपराधी ओर उनके सहयोगी कानूनी प्रावधानो को अपने फायदे के लिए उपयोग कर लेते हैं जिसके लिए पुलिस से जुगाड़ बिठानी पड़ती है, क्योंकि पुलिस कानून होने के बाद इसका उपयोग नही करती है।