जांच से असंतुष्ट शिकायतकर्ता मुख्य निर्वाचन अधिकारी भोपाल से जांच की लगाई गुहार
जांच से जिला कलेक्टर को दूर रखने की मांग के बाद भी कलेक्टर से ही करवाई गई थी जांच
माही की गूंज, झाबुआ।
वर्ष 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में व्यवस्थाओं की राशि मे हुए भ्रष्टाचार के मामले में जांच करने वाले अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध ही रही जिन्होंने जांच में दिए गये बिंदुओं पर घुमा फिरा कर जबाब पेश कर मामले को रफ़ा-दफा कर दिया। आरटीआई कार्यकर्ता एवं शिकायतकर्ता श्रवण मालवीय द्वारा इस मामले की जांच से जिला कलेक्टर को दूर रखने की मांग की थी जो जांच को प्रभावित कर सकते है, इसके बाद भी जांच जिला कलेक्टर को ही दी गई जिनके द्वारा जांच के दिए गए प्रतिवेदन में ये तक नही बताया गया कि, जांच के लिए गठित टीम में कौंन-कौंन था और जांच किस दिनांक को की गई। जांच में किन अधिकारीयो और कर्मचारियों के बयान दर्ज किए गए इसका तक उल्लेख नही किया गया था। जांच से असंतुष्ट शिकायतकर्ता श्रवण मालवीय द्वारा मुख्य निर्वाचन अधिकारी भोपाल को इस संबंध में लिखित शिकायत की गई जिसका अब तक कोई जबाब नही मिला है।
उच्च स्तरीय जांच टीम चार्टर्ड अकाउंटेंट की टीम बनाकर जांच करने की मांग
शिकायतकर्ता श्रवण मालवीय द्वारा बताया गया कि, मेरे द्वारा 29 दिसम्बर 2020 को मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल को शिकायत दर्ज करवाई थी, शिकायत में संदेह व्यक्त करते हुए स्पष्ट लिखा था कि जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर झाबुआ से मेरी शिकायत और संलग्न दस्तावेजों की जांच नहीं करवाई जाए और कलेक्टर से ऊपर बैठे अधिकारी से जांच करवाई जाए, लेकिन जिला कलेक्टर द्वारा ही मामले की जांच कर उसे रफ़ा दफा कर दिया गया। वही जांच दल और जांच दिनांक की जानकारी मांगने पर भी जानकारी नही दी जा रही है, उक्त मामला गंभीर है और देश की निर्वाचन व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहा है इसलिए इस मामले की जांच उच्च स्तरीय जांच टीम चार्टर्ड अकाउंटेंट की टीम बनाकर जाच करवाए जाने की मांग की थी, जिसकी आज दिनांक तक कोई सुनवाई नही हुई है। शिकायतकर्ता श्रवण मालवीय द्वारा 21 नवम्बर 2021 को एक शिकायती पत्र मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय अरेरा हिल्स भोपाल को भेज कर मांग की गई कि, उच्च स्तरीय जांच टीम बनाकर और चार्टर्ड अकाउंटेंट ऑफिसर को लेकर के जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा लिखी गई समस्त नोट शीट, मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी भोपाल से प्राप्त राशि, खर्च राशि, समर्पित राशि, संबंधित विभाग को दिए गए आदेश , नगर परिषदों , पंचायतों के अभिलेखों की जांच करवाई जाए और जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर झाबुआ द्वारा बनाए गए प्रतिवेदन को खारिज कर जांच के समय शिकायतकर्ता को भी पत्र जारी कर शामिल किया जाए ।
ये था मामला
विधानसभा चुनाव 2018 के लिए जिले के प्रत्येक बूथ पर यानी 973 बूथ पर 2500 रुपये के हिसाब से 24,32,500 रुपए दिए जाना थे, पोलिंग बूथों पर भोजन, चाय, नाश्ता आदि की राशि दीया जाना बताया गया है और प्रत्येक बूथ पर 2500 रूपये की राशि जारी की गई थी लेकिन वो बूथ की एजेंसी तक नही पहुँची। मुख्य निर्वाचन शाखा भोपाल से विधानसभा 2018 में 973 बुथों के लिए रंगाई-पुताई, लेखन कार्य 3 लाख 90 हजार , बिजली एवं जल प्रभार 15 लाख 12 हजार 980 , भोजन नास्ता 24 लाख 32 हजार 500 रुपए , आदि अन्य मदों के लिए लाखों रुपए की राशि जिला निर्वाचन अधिकारी और कलेक्टर झाबुआ को दी गई थी। लेकिन आरटीआई में जानकारी सामने आई की राशि जिला निर्वाचन शाखा की और से नही बल्कि यह राशि स्थानीय एजेंसी, नगर परिषद और ग्राम पंचायतों द्वारा व्यव की गई।
मामले में शिकायत के साथ में संलग्न दस्तावेज में नगर परिषद राणापुर 1 लाख 15 हजार 650 रुपये 13 पोलिंग बूथों पर। झाबुआ नगर परिषद द्वारा 14 लाख 87 हजार 108 रूपये 34 पोलिंग बुथों पर। थांदला नगर परिषद द्वारा 2 लाख 42 हजार 678 रुपये 13 पोलिंग बुथों पर । मेघनगर नगर परिषद द्वारा 11 पोलिंग बूथों पर। पेटलावद नगर परिषद द्वारा 13 पोलिंग बूथों सहित 81 पोलिंग बुथों में लाखों रूपये की राशि पोलिंग बूथों पर मतदान समाप्ति तक व्यवस्थाओं को लेकर खर्च की गई थी और जिले की 892 ग्राम पंचायतों से संबंधित पोलिंग बूथों पर खर्च राशि की गई, जो राशि निर्वाचन शाखा झाबुआ द्वारा खर्च की गई राशि का भुगतान किया जाना था। आरटीआई में सभी एजेंसियों ने यही बताया कि चुनाव व्यवस्था पर खर्च की गई राशि के लिये जिला निर्वाचन की और से कोई राशि प्राप्त नही हुई है पूरी राशि स्वयं के मद से वहन की गई।
अभिलेख भी किए गये थे प्रस्तुत, भ्रामक जानकारी बना कर दबाया गया मामला
आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि, शिकायत के साथ प्रमाणित अभिलेख भी प्रस्तुत किए गये थे लेकिन जिला निर्वाचन अधिकारी कलेक्टर झाबुआ द्वारा शिकायत के मुख्य बिंदुओं पर जांच नहीं करते हुए भ्रामक और गलत जांच कर जाच प्रतिवेदन बनाया। जो जांच के आदेश के 7 माह बाद भोपाल से प्राप्त राशि और नगर परिषद और पंचायतों के बिना अभिलेखों को देखकर जाच प्रतिवेदन बनाया गया जो गलत हो कर संदेह के घेरे में है जिसकी पुन : जांच की जावे। जिला निर्वाचन अधिकारी झाबुआ द्वारा बनाए गए जांच प्रतिवेदन में यह भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि उनके द्वारा किस दिनांक को अपनी नोट शीट पर जांच टीम बनाकर जांच करने के लिए आदेश दिए गए है।ं जांच प्रतिवेदन में यह भी स्पष्ट नहीं हो रहा है कि किस अधिकारी और उनके सहयोगी दल द्वारा और किस दिनांक को जांच की गई है। जांच प्रतिवेदन देखने से ही स्पष्ट होता है कि संबंधित शिकायत के बिंदुओं की जांच और अभिलेखों को नहीं देखते हुए संबंधित जिला निर्वाचन अधिकारी द्वारा अधिकारियों को बचाते हुए जांच की गई है जिससे स्पष्ट हैं कि जांच प्रतिवेदन कार्यालय में बैठकर बनाया गया है और दिए गये दस्तावेजों पर जांच नहीं करते हुए एक फर्जी जांच प्रतिवेदन बनाकर दिया गया।