माही की गूंज, संजय भटेवरा
रूस और यूक्रेन के बीच जंग में हजारों भारतीय विद्यार्थी जो यूक्रेन में रह कर पढ़ाई कर रहे थे, का जीवन खतरे में पड़ गया। जिसके बाद सरकार उनकी घर वापसी के लिए ऑपरेशन गंगा अभियान चला रही है, जिसकी समीक्षा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे है। वही अपने मंत्रिमंडल के 4 सदस्यों को इसके लिए मोर्चो पर लगाया गया है। निश्चित रूप से संकट की इस घड़ी में सरकार ने बच्चों के परिवारों की पीड़ा को समझा है और सरकार हर संभव प्रयास कर रही है कि बच्चो कि जल्द से जल्द और सकुशल घर वापसी हो, सरकार का यह प्रयास सराहनीय है।
लेकिन सरकार के इस पवित्र अभियान को लेकर भी सोशल मीडिया पर जंग छिड़ी हुई है और कुछ असामाजिक तत्व इसका विरोध भी कर रहे हैं। पक्ष और विपक्ष में तर्क-कुतर्क दिए जा रहे है।ं वहीं कुछ लोग पढ़ाई कर रहे छात्रों को ही नसीहत दे रहे हैं कि, देश में इतनी शिक्षण व्यवस्था होने के बाद ये लोग आखिर विदेश पढ़ाई करने इतना भारी खर्च वहन कर क्यों जा रहे हैं...? क्या इन्हें देश की शिक्षण व्यवस्था पर भरोसा नहीं था..? और ये जब अपनी रिस्क पर देश को छोड़कर पढ़ाई करने गए थे, तो वापसी भी इनका अपना निजी मसला है। निश्चित रूप से वर्तमान में यह कहना आसान है लेकिन दर्द का अहसास उसी को होता है जिसे चोट लगी हो। ऐसे युद्ध के भयावह माहौल में अपने बच्चों की चिंता सभी माता-पिता को होना स्वाभाविक है और देश के हर नागरिक की सुरक्षा करना सरकार का मुख्य दायित्व है। अगर सरकार ऑपरेशन गंगा अभियान चलाकर देश के बच्चों की कुशल घर वापसी करा रही है, तो वह अपने कर्तव्य का निर्वहन ही कर रही है। इस कार्य को राजनीतिक लाभ-हानि की दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए न ही इसको लेकर बहस होनी चाहिए।
बल्कि बहस इस बात को लेकर होनी चाहिए कि, आखिर क्यों इन बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के लिए अपना घर परिवार छोड़कर इतनी दूर जाना पड़ा...? सरकार तमाम दावे करती है, बजट का एक बड़ा हिस्सा शिक्षण व्यवस्था पर ही खर्चा होता हे... उसके बाद भी अगर बच्चे बाहर जा रहे हैं तो, या तो सरकार के प्रयास में कमी है... या फिर भारतीय व्यवस्था को बच्चे स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं... या उनमें धैर्य की कमी है... जो उन्हें जल्दी सफलता प्राप्त करने के लिए यहां की व्यवस्था को नकार कर अपने खर्चे पर डिग्री प्राप्त करने की चाह विदेश खींचकर ले जा रही है।
आखिर बच्चे विदेश क्यों जा रहे हैं...?
भारत में मेडिकल संस्थान में प्रवेश के लिए अखिल भारतीय स्तर पर एक परीक्षा आयोजित की जाती है जिसे एनईईटी (नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा कहा जाता है। जिसमें पूरे भारत के छात्रों के लिए एमबीबीएस व बीडीएस में प्रवेश के लिए बच्चे परीक्षा के माध्यम से पात्रता हासिल करते हैं। वर्तमान में भारत में 83 हजार 2 सौ एमबीबीएस व 26 हजार 9 सौ 49 बीडीएस सीटें उपलब्ध है। प्रतिवर्ष इतनी सीटें भरने के बाद शेष बच्चे जिन्हें इन कॉलेजों में प्रवेश नहीं मिल पाता है वे एजेंटों के माध्यम से विदेशों की ओर रुख करते हैं। भारत में एक रैकेट चल रहा है जो ऐसे विद्यार्थियों के माता-पिता व विद्यार्थियों से संपर्क कर उन्हें पढ़ाई, रहने, खाने का पैकेज दिखला कर व बच्चों को डॉक्टर बनाने का सपना दिखाकर एक मोटी रकम ऐठ कर बच्चों को यूक्रेन, किरकिस्ता, पोलैंड व अन्य देशों के कॉलेजों में एडमिशन करवा देते है।ं वहां की पढ़ाई पूर्ण करने के बाद ये बच्चे भारत आकर अपना रजिस्ट्रेशन करा कर, अपनी डॉक्टरी या सरकारी नौकरी के पात्र हो जाते हैं। अपने बच्चों को डॉक्टर बनाने की चाह ही इन्हें विदेश भेजने पर मजबूर करती है।
निश्चित रूप से सपने देखना बुरी बात नहीं है। हमारे पूर्व राष्ट्रपति महान वैज्ञानिक, मिसाइल मैन, डॉक्टर अब्दुल कलाम तो बच्चों से हमेशा ही बडे सपने देखने का आवाहन करते थे और कहते थे कि, उच्चे सपने रात में देखो और दिन में उनको पूरा करने का ईमानदारी से प्रयास करो। सरकार को भी चाहिए कि, वे देश की शिक्षण व्यवस्था को ही इतनी मजबूत और व्यापक बनाएं जिससे देश के बच्चों को बाहर ना जाना पड़े, वरन् बाहर के बच्चे आकर यहां पढ़ाई करें। ऑपरेशन गंगा की सफलता के लिए हम सभी कामना करते हैं और उम्मीद करते हैं कि, सरकार सभी बच्चों की सकुशल घर वापसी करवाएगी। हालांकि कर्नाटक व पंजाब के छात्र की मौत की दुखदाई खबर सामने आई है लेकिन प्रत्येक भारतवासी यह दुआ अवश्य कर रहा है कि, सभी बच्चे सकुशल घर पहुंच जाए।